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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय


उन दूसरे स्थानोंपर भी सत्याग्रह किया जा सकता है जहाँ दलित वर्ग के लोग इसी तरहकी निर्योग्यताओंके शिकार है। परन्तु अच्छा तो यह होगा कि इस मामले में सवर्ण हिन्दुओंकी भावनाओंके प्रदर्शनके रूपमें केवल सवर्ण हिन्दुओंके वाइकोमसे त्रिवेन्द्रम और वापसीके लिए, एक ऐसे जुलूसकी व्यवस्था कीजिये जो बिलकुल ही शान्तिपूर्ण और अहिंसात्मक हो तथा जो महाराजासे मिले और उनको पंचम वर्णके हिन्दुओंकी निर्योग्यताओंके निवारणकी आवश्यकता समझाये। जुलूसमें शामिल होनेवाले संवर्ण हिन्दुओंको उन सभी असुविधाओंको झेलने के लिए तैयार रहना चाहिए जो इस प्रकारके पैदल और मन्द गतिके साथ चलनेवाले जुलूसोंसे सम्बद्ध है। उनको गाँवों और शहरोंसे बाहर अपने खेमे गाड़ने चाहिए और अपने खाने-पीनेका प्रबन्ध स्वयं ही करना चाहिए। जुलूस निकालनेका प्रबन्ध तभी किया जाना चाहिए जब उसके संगठनकर्ताओंको पूरा भरोसा हो जाये कि वातावरण बिलकुल अहिंसापूर्ण बना रहेगा। इस जुलूसके प्रयाणके दौरान वाइकोममें सत्याग्रह मुल्तवी रखा जा सकता है। फिलहाल तो मैं इतना ही सुझाव दे सकता हूँ।

यह महात्माजीके साथ हमारी जो बातचीत हुई उसका सार-मात्र है। महात्माजीसे हमने जितने भी सवाल किये उनके पास उन सबके अत्यन्त सन्तोषप्रद उत्तर थे। इस सारको महात्माजी द्वारा समाचारपत्रोंमें जारी किये गये वक्तव्यका पूरक माना जा सकता है। उनकी बहुत ही स्पष्ट राय है कि केरल कांग्रेस कमेटीको संघर्ष जारी रखना चाहिए। हालाँकि महात्माजी सत्याग्रह आन्दोलनमें किसी भी बाहरी मददके सिद्धान्ततः विरुद्ध हैं, फिर भी उनका स्पष्ट मत है कि केरलको, अस्पृश्यता-निवारणके इस आन्दोलनके आम प्रचारकी दृष्टिसे मद्रास अहातेसे बाहरके लोगोंसे भी सहायता लेनका हक है। महात्माजीने यह राय भी जाहिर की है कि स्वयंसेवकोंकी सीमित संख्या और समितिके साधनोंको यथासम्भव बचाये रखनेकी जरूरतको देखते हुए अभी इस समय धारा १४४ के अन्तर्गत जारी किये गये आदेशोंका उल्लंघन करना उचित नहीं है।

[अंग्रेजीसे]

हिन्दू, २६-५-१९२४