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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

इतना तो जरूर कहा जा सकता है कि जहाँ मुसलमान लोग साफ तौरपर कमजोर थे और हिन्दुओंका ज्यादा जोर था (जैसा कि वर्षों पूर्व कटारपुर और आरामें था) वहाँ पड़ौसी हिन्दुओंने उनके साथ बड़ी बेरहमीका बरताव किया। बात यह है कि जब खून उबल उठता है और पूर्वग्रहोंका बोलबाला होता है, तब आदमी जानवर बन जाता है और वैसा ही व्यवहार करता है――फिर वह चाहे अपनेको हिन्दू कहता हो या ईसाई या और कुछ।

फसावोंका अड्डा

लेकिन इन फसादोंका अड्डा है पंजाब। मुसलमानोंकी शिकायत है कि फजल हुसेन साहबने डरते-डरते सरकारी नौकरियोंमें मुसलमानोंको भी वाजिब तादादमें रखने की कोशिश की और बस इसी बातपर हिन्दुओंने तूफान बरपा कर दिया। ऊपर मैंने जिस पत्रसे उद्धरण दिया है, उसके लेखक बड़ी कटुताके साथ शिकायत करते हैं कि जहाँ कहीं हिन्दू किसी सरकारी विभागका प्रधान होता है, वहाँ वह किसी भी मुसलमानको किसी पदपर नहीं आने देता।

इस तरह इस तनावके कारण सिर्फ धामिक ही नहीं हैं। मैंने जिन आरोपोंका उल्लेख किया है वे व्यक्तिगत है; लेकिन सर्वसाधारणका मानस व्यक्तिगत रायका ही प्रतिबिम्ब होता है।

अहिंसासे ऊब गये

लेकिन इस तनावका तात्कालिक कारण बहुत ही ज्यादा खतरनाक है। मालूम होता है कि सोचने-समझनेवाली जनता अहिंसासे ऊब गई है। वह अभीतक यह नहीं समझ पाई है कि मैंने अहमदाबाद और वीरमगांवके काण्डोंके बाद, फिर बम्बईके उपद्रवोंके बाद और अन्तमें चौरीचौराके बर्बर कृत्योंके बाद सत्याग्रहको स्थगित क्यों कर दिया। चौरीचौराके बाद तो परिस्थिति असह्य हो गई और अक्लमन्दोंने यह मान लिया कि अब सत्याग्रहकी और इसीलिए निकट भविष्यमें स्वराज्यकी भी कोई आशा नहीं बची। अहिंसामें उनका विश्वास सतही था। दो साल पहले एक मुसलमान भाईने मुझसे सच्चे दिलसे कहा था: “में आपकी अहिंसामें विश्वास नहीं रखता। मैं तो यही चाहता हूँ कि कमसे कम मेरे मुसलमान भाई इसे न अपनायें। हिंसा जीवनका नियम है। अहिंसाकी जैसी परिभाषा आप करते हैं, वैसी अहिंसासे अगर स्वराज्य मिलता भी हो तो वह मुझे नहीं चाहिए। मैं तो अपने शत्रुसे अवश्य घृणा करूँगा। ईमानदार आदमी हैं। मैं इनकी बड़ी इज्जत करता हूँ। मेरे एक दूसरे बहुत बड़े मुसलमान दोस्तके बारेमें भी मुझे ऐसा ही बताया गया है। हो सकता है, वह बात झूठी हो; पर जिन्होंने मुझे बताया है वे तो झूठ नहीं बोलते।

हिन्दू भी विमुख

अहिंसाके प्रति विमुखताकी यह भावना अकेले मुसलमानोंमें ही देखी जाती हो सो बात नहीं। हिन्दू भाइयोंने भी ऐसी ही बातें कहीं है और शायद ज्यादा तीखेपनसे कही हैं। चूंकि मैं पूर्ण अहिंसा विश्वास रखता हूँ और उसकी हिमायत करता हूँ इसलिए ये भाई बहुत