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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

८. राष्ट्रीय सरकारके अधीन नौकरियाँ योग्यताके अनुसार दी जायें। योग्यताका निर्णय सभी कौमोंके प्रतिनिधियोंका एक परीक्षा-बोर्ड करे।

९. शुद्धि या तबलीगके काममें जहाँतक यह शुद्धि या तबलीगका ही काम है, खलल नहीं डाला जा सकता; लेकिन दोनोंका काम सचाई और ईमानदारीके साथ होना चाहिए और वे लोग ही इस कामको करें जो चरित्रवान सिद्ध हो चुके हों। दूसरे मजहबपर कोई चोट न की जाये। छिपे तौरपर किसी किस्मका प्रचार-कार्य न किया जाये और पुरस्कारका प्रलोभन न दिया जाये।

१०. ऐसा लोकमत तैयार किया जाये कि अश्लील और गाली-गलौज भरे सभी लेखों, खासकर पंजाबके कुछ अखबारोंमें छपनेवाले ऐसे लेखोंका प्रकाशन बन्द हो जाये।

११. अगर हिन्दू अपनी कायरता नहीं छोड़ेंगे तो कुछ भी नहीं बनेगा। यह अधिकांशतः हिन्दुओंके ही हित-अहितका सवाल है। इसलिए उन्हींको सबसे ज्यादा त्याग करने के लिए तैयार रहना चाहिए।

लेकिन यह उपचार अमलमें किस तरह लाया जाये? इन खब्ती हिन्दुओंको कौन समझाये कि गो-रक्षाका सबसे अच्छा तरीका है गायके प्रति अपने कर्तव्यका पालन करना। मुसलमान भाइयोंके पीछे पड़े रहनेसे कुछ भी नहीं बनेगा; और हठधर्मी मुसलमानोंको कौन समझाये कि जब कोई हिन्दू मसजिदके सामने बाजा बजाता है तो उसका सिर फोड़ना धर्म नहीं अधर्म है। या फिर हिन्दुओंके दिलमें यह बात कौन उतारे कि अगर लोकनिर्वाचित और धर्मनिरपेक्ष सरकारी संस्थाओंमें अल्पसंख्यक जातियोंके प्रतिनिधि ज्यादा भी रहें तो उससे उनका कोई नुकसान नहीं होगा? ये कुछ मुनासिब सवाल हैं, जिनसे इस समस्याके समाधानके मार्गकी कठिनाइयाँ स्पष्ट हो जाती हैं।

किन्तु अगर उक्त उपचार ही एकमात्र सच्चा उपचार है तो सभी कठिनाइयोंपर विजय प्राप्त करनी पड़ेगी। सच पूछिए तो जो कठिनाइयाँ हैं, वे ऊपरी ही है। अगर थोड़े-से हिन्दू और थोड़े-से मुसलमान भी ऐसे हों जिनका इस उपचारमें जीवन्त विश्वास हो तो बाकी सब काम आसान है। बल्कि सच तो यह है कि अगर दोनों कौमोंमें से किसी एकमें भी ऐसे जीवन्त विश्वासवाले कुछ लोग हों तो भी यह उपचार आसानीसे काममें लाया जा सकता है। बस वे एक हृदय होकर अपना काम करते जायें, दूसरे लोग तो अपने-आप उनका अनुगमन करने लगेंगे। सिर्फ एक ही पक्षका इस बातको मान लेना काफी है क्योंकि इस उपचारमें सौदेबाजीकी जरूरत नहीं है। उदाहरणके लिए, हिन्दुओंको चाहिए कि वे गायोंके मामलेमें मुसलमानोंको परेशान करना छोड़ दें और सो भी ऐसी कोई आशा रखे बिना कि मुसलमान लोग अपने-आप इस सम्बन्धमें कोई मुरौवत दिखायेंगे। प्रतिनिधित्वके सम्बन्धमें भी मुसलमानोंकी जो कुछ माँग हो उसे वे स्वीकार कर लें। इस मामले में भी वे बदलेकी कोई आशा न रखें और अगर मुसलमान लोग हिन्दुओंके बाजे या आरतीको जबरदस्ती बन्द करनेपर जिद करें तो भले ही एक-एक हिन्दूको वहीं मर मिटना पड़े, किन्तु वे प्रतिहिंसा-स्वरूप अपना हाथ उठाये बिना भजन-आरती जारी रखें। तब मुसलमान लोग शमिन्दा हो जायेंगे और बहुत ही थोड़े दिनोंमें सही रास्तेपर आ जायेंगे। चाहे तो मुसलमान भी ऐसा ही