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हिन्दू-मुस्लिम एकता

३. शुद्धि-आन्दोलन।

४. सबसे अधिक सबल कारण है अहिंसासे लोगोंका ऊब उठना और इस अन्देशेका होना कि ज्यादा दिनोंतक अहिंसाकी तालीम मिलनेसे दोनों कौमें प्रतिशोध और आत्मरक्षाके नियमको भूल जायेंगी।

५. मुसलमानोंका गो-वध और हिन्दुओंका बाजा।

६. हिन्दुओंकी कायरता और इस कारण मुसलमानोंके प्रति उनका अविश्वास।

७. मुसलमानोंका आततायीपन।

८. हिन्दुओंको नेकनीयतीपर मुसलमानोंकी बेऐतबारी।

उपचार

१. इसके समाधानकी सबसे बढ़िया कुँजी है तलवारके नियमके बजाय पंच-फैसलेके नियमको अपनाना।

न्यायप्रिय लोगोंके मतको इतना प्रबल होना चाहिए कि पीड़ित पक्षोंके लिए कानूनको अपने हाथों में ले लेना असम्भव हो जाये। हरएक मामला या तो खानगी पंचायतोंमें पेश किया जाये, और अगर सम्बन्धित पक्ष असहयोगमें विश्वास न रखते हों तो मामले को अदालतमें दायर किया जाये।

२. इस अज्ञान-जनित आशंकाको दूर किया जाये कि ऐसेमें हिंसाकी जगह भीरुतामूलक अहिंसा आ जायेगी――अहिंसाको भीरतामूलक कहना भारी भूल है।

३. अगर कौमके अगुआ एकताके कायल हों तो वे परस्पर बढ़ते हुए अविश्वासके बदले विश्वासकी भावना जागृत करें।

४. हिन्दुओं और मुसलमानोंको आततायीसे डरना छोड़ देना चाहिए और मुसलमानोंको चाहिए कि वे अपने हिन्दू भाइयोंको आतंकित करना अपनी शानके खिलाफ समझें।

५. हिन्दुओंको यह न सोचना चाहिए कि हम मुसलमानोंसे जबरन गो-हत्या बन्द करा लेंगे। वे मुसलमानोंके साथ दोस्ती करके यह विश्वास रखें कि मुसल लोग अपने हिन्दू पड़ोसियोंका खयाल करके खुद ही अपनी खुशीसे गो-हत्या बन्द कर देंगे।

६. मुसलमानोंको भी यह नहीं सोचना चाहिए कि वे हिन्दुओंको मसजिदोंके सामने बाजा बजाने या आरती करने से जबरदस्ती रोक सकते हैं। उन्हें हिन्दुओंको अपना दोस्त बनाना चाहिए और विश्वास रखना चाहिए कि वे मुसलमानोंकी उचित भावनाओंका खयाल जरूर करेंगे।

७. हिन्दुओंको चाहिए कि वे निर्वाचित संस्थाओंमें प्रतिनिधित्वके सवालको मुसलमानों तथा दूसरी अल्पसंख्यक जातियोंपर छोड़ दें और ये निर्णायक जो निर्णय करें उसको सच्चे दिलसे और शोभनीय ढंगसे मंजूर करके उसपर अमल करें। अगर मेरा बस चले तो मैं हकीम अजमलखाँको एकमात्र सरपंच नियुक्त कर दूँ और उन्हें पूरी आजादी दे दूँ कि उन्हें जो ठीक लगे उसके मुताबिक वे मुसलमानों, सिखों, ईसाइयों, पारसियों तथा दूसरी जातियोंसे सलाह-मशविरा करें।

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