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१२५. देशी रियासतोंमें सत्याग्रह

एक भाई लिखते हैं:[१]

यदि मेरे लेखोंसे ऐसी ध्वनि निकलती प्रतीत हुई हो तो मुझे उसके लिए खेद है। सत्याग्रहके लिए मर्यादा केवल सत्य और अहिंसाकी ही होती है। जहाँ ये दोनों हों वहाँ सत्याग्रह किया ही जा सकता है। इसी दृष्टिसे विचार करते हुए मेरी मान्यता है कि मेरे लेखोंमें कुछ विरोध नहीं होता।

हिन्दुस्तानके लिए स्वराज्य प्राप्तिकी खातिर देशी रियासतोंमें सत्याग्रह नहीं किया जा सकता। वहाँ तो वह स्थानीय समस्याओंको लेकर ही किया जा सकता है। लेकिन यदि [आग्रहमें ] असत्यका तनिक भी अंश हो तो देशी रियासतों अथवा अन्य किसी भी जगह सत्याग्रह नहीं किया जा सकता। उद्देश्य सत्यपूर्ण हो तथापि यदि लोग शान्ति न बनाये रख सकें, क्रोध करें, सत्य भाषण करनेमें संकोच करें और कष्ट-सहनके लिए तैयार न हों तो वे सत्याग्रह आरम्भ नहीं कर सकते।

सामान्य दृष्टिसे देखते हुए मुझे फिलहाल सारे देशका वातावरण सत्याग्रहके प्रतिकूल दिखाई देता है। यहाँ द्वेष, असत्य, और अशान्ति इत्यादिकी बहुत वृद्धि हुई है। सत्याग्रहका अर्थ विरोधीको परेशान करना ही हो गया है। लोग नाम तो सत्याग्रहका लेते हैं परन्तु दुराग्रह करते हुए दिखाई देते हैं। ऐसे अवसरोंपर जहाँ सत्याग्रहका कारण उपस्थित हो वहाँ भी सत्याग्रहीको सावधानीसे काम लेना चाहिए। लेकिन यदि सावधान रहते हुए भी यह जान पड़े कि ऐसा प्रसंग उपस्थित हो गया है कि जब सत्याग्रह करना अनिवार्य है तो वहाँ सत्याग्रही कदापि किसीके रोके नहीं रुकेगा।

[ गुजरातीसे ]
नवजीवन, १५-६-१९२४
  1. पत्र यहाँ नहीं दिया जा रहा है। इसमें पत्र-प्रेषकने लिखा था नवजीवनमें अभी हालमें ही प्रकाशित हुए आपके कुछ लेखोंसे सामान्य पाठक यह समझता है कि आप देशी रियासतोंमें सत्याग्रह करनेके विरुद्ध हैं।