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१२६. आज बनाम कल

जिन भाईने देशी रियासतोंमें सत्याग्रह करनेके सम्बन्धमें प्रश्न किया है वे ही एक पत्रमें[१] लिखते हैं।

इस लेखपर विचार करते समय पाठक भावनगरकी परिषद्को भूल जायें। मैंने तो इस परिषद्का उल्लेख यहाँ उदाहरणके रूपमें ही किया है। मैं परिषद्के बारेमें अपने विचार व्यक्त कर चुका हूँ। उसे भावनगरमें न करनेके जो कारण मैंने बताये हैं, वस्तुतः उसके वे ही कारण हैं; दूसरे नहीं। अगर हम इतना याद नहीं रखेंगे तो हम सम्भवतः एक मामलेको सुलझानेका प्रयत्न करते हुए दूसरेको उलझा लेंगे।

मुझे तो नहीं लगता कि सत्याग्रहके सम्बन्धमें मेरे पहलेके और हालके लेखोंमें कोई विरोध अथवा अन्तर हो सकता है। यह सच है कि जैसे-जैसे परिस्थिति बदलती जाती है वैसे-वैसे हमें नई प्रतीत होनेवाली शर्तें दीखने लगती हैं, परन्तु विचारवान मनुष्य तुरन्त समझ सकता है कि ये शर्तें मूल सिद्धान्तमें ही समाविष्ट हैं। उदाहरणार्थ अहमदाबादकी कांग्रेसमें[२] तय किया गया था कि शान्ति मन, वचन और कर्मसे रखी जानी चाहिए। यह कोई नई शर्त नहीं थी। जब यह अनुभव हुआ कि लोग मनमें तो हिंसा पोषते रहते हैं केवल कर्म द्वारा करते नहीं, तब यह स्पष्ट करनेकी जरूरत हुई कि कोई भी मनुष्य तभी अहिंसानिष्ठ माना जायेगा जब वह मन, वचन और कर्मसे अहिंसक होगा अर्थात् यह कहा गया कि दिखावटी शान्ति वास्तविक शान्ति नहीं है। यह तो कोई नई बात नहीं मानी जा सकती। सदाचारकी शर्त और अन्य शर्तों सत्याग्रहके संचालकोंके लिए हैं और वे पहले भी अवश्य ही थीं। हम सामान्य कार्योंमें भी सदाचारकी आवश्यकता महसूस करते हैं। तब फिर अगर सत्याग्रहमें वह आवश्यक जान पड़े तो इसमें आश्चर्यकी कोई बात नहीं। मैंने विशाल जनसमुदायोंसे ऐसी कड़ी शर्तोंके पालनकी आशा कभी नहीं की है। इस आशाके साथ तो बोरसदमें भी सत्याग्रह[३] नहीं किया जा सकता था। उसमें आम लोगोंके पालनके लिए केवल दो ही शर्तों थीं। उन्हें लड़ाईमें पशुबलका उपयोग नहीं करना होगा और जो नेता कहें, उन्हें वही करना होगा।

मैंने भावनगर और वाइकोमके सत्याग्रहियोंके सम्बन्धमें यह मान रखा है कि वे कांग्रेस कमेटियोंके सदस्य हैं। यदि कांग्रेसके कार्यकर्त्ता कांग्रेसके प्रस्तावोंको जानते हुए भी उसकी सामान्य और स्थायी शर्तोंका पालन तक नहीं करते तो वे सत्याग्रह करनेके योग्य कैसे माने जायेंगे? यदि वे एक कार्यके सम्बन्धमें ली गई प्रतिज्ञाका पालन नहीं करते तो दूसरी प्रतिज्ञाका पालन किस तरह करेंगे? स्वराज्यका सत्याग्रह तथा खादीके साथ सीधा सम्बन्ध है। स्वराज्यवादीके लिए कोई दूसरा सत्याग्रह

 
  1. पत्र यहाँ नहीं दिया गया है।
  2. दिसम्बर, १९२१ में।
  3. यह १९२३-२४ में वल्लभभाई पटेलके नेतृत्वमें किया गया था।