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'१३६. पत्र: प्रभाशंकर पट्टणीको

ज्येष्ठ बदी १ [१८ जून, १९२४][१]

सुज्ञ भाईश्री, बाबू साहब (यशवन्त प्रसाद), वीरभाई और दिनकररावके बीच जो मुकदमा चल रहा है मैं यह पत्र उसके बारेमें ही लिख रहा हूँ। वीरभाई और मार्कण्डराय मेरे पास आये थे। उसके बाद ही मुझे इस मामलेकी थोड़ी-बहुत जानकारी मिल पाई है। वीरभाई और बाबू साहब तो यह मामला पंचोंको सौंपनेके लिए तैयार है; लेकिन दिनकररावके बारेमें कोई कुछ नहीं कह सकता। क्या आप सब पक्षोंको बुलाकर और उन्हें पंच निर्णयके लिए राजी करके इस पारिवारिक कलहको अदालतमें ले जाये जानेसे नहीं रोक सकते? एक मामलेकी सुनवाई तो २५ तारीखको भावनगरमें होनेवाली है। आपसे प्रार्थना है कि आप इस सम्बन्धमें जो कुछ करना चाहते हों उससे पहले ही करें। इस परिवारसे मेरी अपेक्षा आपकी घनिष्ठता अधिक है, इसलिए मैं आपको क्या सलाह दूँ? चूँकि आप सरकारी अधिकारी हैं इसलिए कोई-न-कोई तो आपके पास आयेगा ही। आप ऐसा समझें कि मैं तीनों पक्षोंकी ओरसे आपके पास आया हूँ।

मोहनदासके वन्देमातरम्

मूल गुजराती पत्र (सी० डब्ल्यू० ३१८०) से।

सौजन्य: महेश पट्टणी

१३७. पत्र: अब्बास तैयबजीको

१८ जून, १९२४

भाई साहब,

आप तो सचमुच कमाल करते हैं। आपके गुजराती पत्र अंग्रेजी पत्रोंसे बहुत बेहतर हुआ करते हैं। मुझे आपके गुजराती पत्रोंमें आपकी झलक मिलती है और आपके अंग्रेजीमें लिखे पत्रोंमें आपकी अंग्रेजीकी।

चरखेसे निकलता हुआ तार आज आपके और खुदाके बीच आता दिखता है; पर आगे चलकर आप इसी तारपर खुदाको नाचता हुआ देखेंगे। जहाँ श्रद्धा होती है वहाँ आप उसे हाजिर ही समझें।

 
  1. गांधीजीने ३ जुलाई, १९२४ को प्रेषीको लिखे अपने पत्रमें भी दिनकरराव का उल्लेख किया है; अतः सम्भवतः यह पत्र १९२४ में लिखा गया था। उस वर्षे ज्येष्ठ बदी १, १८ जूनको पड़ी थी।