पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 24.pdf/२९४

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१३४. तार: गंगाद्दीन छावनीवालाको[१]

[ १८ जून, १९२४ या उससे पूर्व ]

सकते हैं। यदि वे लोग कोशिश करें तो खद्दरका प्रचार अधिक प्रभावकारी ढंगसे होना सम्भव है।

[ अंग्रेजीसे ]
हिन्दू, १९-६-१९२४

१३५. पत्र: वसुमती पण्डितको

ज्येष्ठ बदी १ [१८ जून, १९२४][२]

चि० वसुमती,

आजकी लिखावट ऐसी नहीं है कि दसमें चार अंक भी दिये जा सकें। इसमें नित्य सुधार किया जाना चाहिए। तुम्हें छपी हुई वर्णमाला सदा पास रखनी चाहिए। यदि तुमने कापी न खरीदी हो तो यहाँ से भेज दूँगा। बा और देवदास आ गये हैं। वे प्रागजीको उनकी जेल-यात्राके अवसरपर विदाई देने आज सूरत जा रहे हैं। तुमने उनकी गिरफ्तारीकी खबर तो पढ़ी ही होगी। यहाँ भी कुछ छींटें पड़े हैं। अब तो बरसात आये तभी चैन मिले। तुम्हारे अंग्रेजी अक्षर ठीक हैं; लेकिन उनमें भी सुधार की गुंजाइश है। मैं जो यह सब लिख रहा हूँ उसका मंशा तुम्हें शर्मिन्दा करना नहीं है; बल्कि उत्साहित करना है।

बापूके आशीर्वाद

वसुमतीबन
लीलावती आरोग्यभवन
देवलाली

मूल गुजराती पत्र (सी० डब्ल्यू० ४४६) से।

सौजन्य: वसुमती पण्डित


देना शायद ही स्वीकार करेगी। किन्तु यदि आप चाहते हैं कि मैं उनके प्रार्थनापत्रको फिरसे समितिके सामने रखूँ तो आपका पत्र पानेपर मैं ऐसा प्रसन्नतापूर्वक करूँगा। देखिए "पत्र: कामाक्षी नटराजनको", १५-८-१९२४।

 
  1. यह तार उस तारके उत्तरमें किया गया था जिसमें गांधीजीसे पूछा गया था कि असहयोगियोंको छावनी क्षेत्रमें प्रवेश करना चाहिए या नहीं।
  2. डाकखानेकी मुहरसे।