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टिप्पणियाँ

यह मान लेनेके बराबर है कि अपने तरीकोंमें हमारा विश्वास नहीं है और हम हिंसाकी गोदमें जा बैठे हैं। जबतक इस सत्याग्रहके संचालक अपने लिए निर्धारित मर्यादाका पूरा-पूरा पालन करते रहेंगे, तबतक सत्याग्रह बन्द करनेका कोई कारण नहीं है। इन महोदयने चौरी-चौरा काण्डका उल्लेख किया है। इस उल्लेखसे प्रकट होता है कि या तो उनके विचार स्पष्ट नहीं हैं या वे वस्तु-स्थितिको ही नहीं जानते। बारडोलीका सत्याग्रह इसलिए स्थगित किया गया था कि चौरी-चौरा काण्डमें कांग्रेस और खिलाफतके लोग भी शामिल थे। जब वाइकोमके सत्याग्रहसे सम्बन्ध रखनेवाले कांग्रेसी लोग तियोंके उक्त गुरुकी रायको ठीक मानते हों, प्रायश्चित्तका, अर्थात् सत्याग्रहके बन्द करनेका सवाल तभी उठ सकता है, अन्यथा नहीं। इसलिए वाइकोम सत्याग्रहके संचालकोंसे मेरा अनुरोध है कि वे दुगुने जोशसे अपने कामको आगे बढ़ायें और साथ ही जो लोग इस आन्दोलनमें शामिल हैं, उनके आचरणपर और कड़ी नजर रखें। कार्यसिद्धिमें वक्त चाहे ज्यादा लगे या कम, यही वह रास्ता है जिसपर चलकर आत्मशुद्धि और कष्ट-सहनके द्वारा पुराने खयालके लोगोंको शान्तिपूर्ण ढंगसे अपनी रायके मुआफिक किया जा सकता है। इसके सिवा कोई दूसरा उपाय है ही नहीं।

"झूठा" का मतलब

शिमलासे एक स्वराज्यवादी मित्र मेरे अभी हालमें ही लिखे लेखोंमें आये हुए "हिंसामूलक" और "झूठा" विशेषणोंके बारेमें मुझे लिखते हैं:

मैं समझता हूँ कि इन विशेषणोंका प्रयोग करते समय आपका मतलब उन लोगों से है जो त्रिविध बहिष्कारके प्रति "झूठे" साबित हुए हैं। मैं आपसे सविनय प्रार्थना करता हूँ कि आप अपनी किसी टिप्पणीमें इसका खुलासा कर दें। जिस प्रकार यहाँके कितने ही प्रमुख व्यक्तियोंको इससे दुःख पहुँचा है, दूसरी जगहोंके लोगोंको भी इसी प्रकार जरूर दुःख हुआ होगा। मैंने तो आपकी बातका उक्त अर्थ ही समझा है। लेकिन मेरा खयाल है और विशेषकर इसलिए कि आप कदापि यह नहीं चाहते कि आपकी बातका कोई व्यक्ति गलत अर्थ लगा ले। इस विषयमें यदि आप अपनी टिप्पणियोंमें कुछ लिखनेकी कृपा करें तो व्यर्थ नहीं जायेगा।

यदि इस गलतफहमी की ओर इन मित्रने मेरा ध्यान आकर्षित करनेकी कृपा न की होती तो मुझे मालूम भी नहीं पड़ता कि ऐसी कोई गलतफहमी हुई है। झूठका जो वातावरण-आज हमें चारों ओरसे घेरे हुए है, अपने हालके सभी लेखोंमें मैंने उसीके बारेमें लिखा है। मेरा आक्षेप सभीपर है। मैं ऐसे अपरिवर्तनवादी लोगोंको जानता हूँ जो अपने शरीरकी हदतक भी खादीके प्रस्तावका अमल नहीं करते। मेरी रायमें उनका यह कार्य निश्चय ही अप्रामाणिक है। अदालतोंके बहिष्कारमें जब हम विश्वास न करते हों और फिर भी उसके बहिष्कारमें विश्वास दिखानेका दम्भ करें, जैसा कि हमने किया है, तो हमारा यह ढंग अप्रामाणिक है। हममें बहुत-से लोग