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१४७. टिप्पणियाँ

चरखेकी धुन

एक बूढ़े मित्र[१] अपने पत्रमें नौजवानोंकी त्रुटियाँ बताते-बताते आत्मनिरीक्षणमें लीन हो गये। वे लिखते हैं:[२]

इन मित्रने चरखा अभी-अभी चलाना शुरू किया है। ऐसी हालतमें यह भी कुछ कम बात नहीं है कि वे सूत कातते समय दुनियाको भूल जाते हैं। मुझे यकीन है कि जब सूतका तार आसानीसे और अच्छा निकलने लगेगा तब उन्हें अपने हृदयमें भगवानकी झलक दिखेगी और भगवान सूतके तारपर नाचते दिखाई देंगे। इस जगतमें ऐसी कौन-सी वस्तु है जिसमें भगवान न हों? हम देखते हुए भी अन्धे हैं---इसीसे वे हमें नहीं दिखाई देते। चरखेसे भारतका संकट दूर होगा, भूखोंको रोटी मिलेगी, स्त्रियोंकी लाज बचेगी, काहिलोंकी सुस्ती मिटेगी, स्वराज्यवादीको स्वराज्य मिलेगा और संयम पालन करनेवालोंको सहायता मिलेगी। जब यह पवित्र भाव चरखेके साथ जुड़ जायेगा तब जरूर सूतपर भगवान नाचने लगेंगे और मेरे बुजुर्ग मित्रको चरखा चलाते हुए भगवानके भी दर्शन होंगे। जैसी जिसकी भावना होती है, उसे वैसा ही फल मिलता है।

सोमाली देशमें चरखा

सोमाली देशके एक खोजा व्यापारी श्री मुहम्मद हासम चमन लिखते हैं कि सोमाली देशमें बहुत-सी औरतें बुनाईका काम करती हैं। अबतक वे मिलके सूतका कपड़ा बुनती थीं, किन्तु अब वहाँ चरखा भी चलने लगा है। अभी उसका प्रचार तो बहुत नहीं हुआ है, किन्तु काफी तेजी से होता जा रहा है। सोमाली अरबोंपर हिन्दुस्तानके आन्दोलनका काफी असर हुआ है। भाई चमनका विश्वास है कि सोमाली देशमें चरखा बड़ी तेजीसे फैलेगा। उन्होंने यह भी लिखा है कि वहाँ पाठशालाएँ मुफ्त चलाई जाती हैं, ऐसा कहा जा सकता है। हर बच्चेको प्राथमिक शिक्षा केवल धार्मिक दी जाती है। तमाम बालकोंके लिए 'कुरान शरीफ' पढ़ना अनिवार्य है। यहाँ मकान बाँसके बने होते हैं और उनका खर्च नहींके बराबर होता है। हर बालक रोज एक मुट्ठी ज्वार लेकर पाठशाला जाता है और वही मास्टर साहबका वेतन है। अन्तको भाई चमन यह भी बताते हैं कि यद्यपि सोमाली देशमें सिर्फ अरबोंकी आबादी है और हिन्दू व्यापारी इने-गिने हैं, फिर भी वहाँ हिन्दू व्यापारी आरामसे रहते हैं और अरब लोग उनके साथ मित्रभावसे बर्ताव करते हैं। हमारे देशमें हिन्दू और मुसलमान क्यों लड़ते हैं?

 
  1. अब्बास तैयबजी; देखिए "पत्र: अब्बास तैयबजीको", १८-६-१९२४।
  2. यहाँ नहीं दिया जा रहा है। उन्होंने पत्रमें लिखा था कि वे चरखा चलाते-चलाते दुनियाको तो भूल गये किन्तु इतनेसे ही उनके हृदयमें ईश्वरीय दिव्य प्रकाश नहीं चमक पाया।