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१५०. बुनाईकी कमाई

मैंने बुनाईके कामसे होनेवाली आयके सम्बन्धमें अपने-अपने अनुभव भेजनेकी जो माँग की थी मुझे उसके फलस्वरूप कुछ पत्र मिले हैं। मैं उनमें से कुछ पठनीय पत्र इस अंक में देता हूँ। खम्भातसे भावसार चन्दूलाल छगनलाल लिखते हैं।[१]

यह खेदकी बात है कि भाई चन्दूलाल ताने और बानेमें विदेशी सूतका उपयोग करते हैं। हम उम्मीद करते हैं कि वे कष्ट करके भी हाथके कते सूतका उपयोग करने लगेंगे। लेकिन उक्त तथ्यसे देखा जा सकता है कि यदि हाथका सूत मिले और खादीकी यथोचित खपत हो तो कोई भी बुनकर-कुटुम्ब अवश्य ही पर्याप्त कमाई कर सकेगा। भाई चन्दूलाल स्वयं और खम्भातके अन्य भावसार लोग खादी ही पहनते हैं। इस बातसे अन्य बुनकरोंको भी शिक्षा लेनी चाहिए। विदेशी कपड़ेका व्यापार करनेवाले लोग भी स्वयं खादी जरूर पहन सकते हैं।

उपाध्याय विजयशंकर काशीरामने अपना अनुभव इस प्रकार लिखा है:[२]

यह अनुभव केवल हाथ कते सूतका व्यवहार करनेवाले और नौसिखिया बुनकरका है। इसलिए यह हमारे लिए अधिक उपयोगी है। यह बात स्पष्ट है यदि हाथका कता सूत एकसार और बटदार हो तथा बुनकर अधिक अनुभवी हो तो वह अपनी आयमें वृद्धि कर सकता है।

तीसरा अनुभव भाई जीवनलाल चम्पानेरियाने भेजा है। वह निम्नलिखित है।[३] जैसा जीवनलालने लिखा है, मैंने भी बुनकरकी नहीं वरन् बुनकर-परिवारकी आय दोसे-तीन रुपये तक बताई है।

 
  1. यहाँ नहीं दिया गया है। इसमें लेखकने लिखा था: असहयोग आन्दोलनमें भाग लेनेसे मेरी नौकरी चली गई थी, इसलिए मैंने कुछ ही महीनोंमें बुनाईका अपना पुराना पारिवारिक धन्धा सीख लिया और इससे मैं ८, ९ घंटे काम करके ५० रुपया मासिक कमा लेता हूँ। किन्तु उन्होंने हाथ कते सूतके अभावमें विदेशी सूतका उपयोग करनेकी बात लिखी थी।
  2. यह भी यहाँ नहीं दिया गया है। लेखकने इसमें बताया था कि यदि कोई मनुष्य १० से १२ घंटे तक प्रतिदिन काम करे तो हाथ कते सूतसे ६ से ७ गज तक खादी बुनी जा सकती है। अन्य प्रक्रियाओंको पूरा करता हुआ भी वह चार दिनमें १६ गज खादी बुन सकता है और १५ रुपया माहकी आय कर सकता है। यह आय एक ग्रामीण अध्यापक या मुहर्रिरकी आयसे अधिक है। उनकी आय तो ८ से १० रुपये प्रतिमास तक ही होती है।
  3. यह पत्र भी यहाँ नहीं दिया गया है। इसमें लेखकने लिखा था, मैं यह नहीं समझ सका हूँ कि गांधीजीने, एक बुनकर २ से ३ रुपये तक रोजाना कमा सकता है, यह हिसाब कैसे लगाया। बोरसदकी भावसार जातिका एक परिवार, जिसमें पति, पत्नी और एक लड़का या लड़की हों, १-३७ रुपये रोजसे अधिक नहीं कमाता और चूँकि पूरे परिवारको अपनी आजीविका चलानेके लिए काममें जुटा रहना पड़ता है, इसलिए बाकायदा पढ़ना-लिखना तो दूर, वे सभ्यता और संस्कृतिकी मोटी-मोटी बातें भी नहीं जान पाते। परिणामस्वरूप उनके जीवन शुष्क और नीरस हो गये हैं।