पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 24.pdf/३४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

उसने कहा, राजनीतिक कैदी “कैद” में गौरवका अनुभव करते हैं। स्वतन्त्रता खो जानेसे जहाँ साधारण अपराधियोंको दुःख होता है, राजनीतिक अपराधियोंपर उसका कोई असर ही नहीं होता। उसने आगे कहा कि इसलिए यह स्वाभाविक है कि सरकार उन्हें सजा देनेका कोई और उपाय करे; इसीलिए उन्हें साधारणतया जो सुविधाएँ बेशक मिलनी चाहिएं, वे नहीं दी जातीं। मैंने ‘टाइम्स ऑफ इंडिया’ के साप्ताहिक अंक, या ‘इंडियन सोशल रिफॉर्मर' या 'सर्वेट ऑफ इंडिया' अथवा ‘मॉडर्न रिव्यू' या ‘इंडियन रिव्यू' की मांग की थी। अधिकारीने उसीके जवाबमें यह बात कही थी। जो लोग अखबारोंको नाश्तेकी ही तरह जरूरी मानते हैं, उनके लिए यह बहुत कड़ी सजा थी। पाठक इसे मामूली सजा न समझें। मैं तो कहूँगा कि अगर श्री मजलीको समाचारपत्र दिये गये होते तो उनके मस्तिष्कमें खराबी पैदा न होती। इसी तरह उस आदमीके लिए जो अपनेको हर अवसरपर सुधारक नहीं मानता यह बहुत उद्वेगजनक सिद्ध होगा कि उसे खतरनाक अपराधियोंके साथ रख दिया जाये, जैसा कि यरवदा जेलमें लगभग सभी राजनीतिक कैदियोंके साथ किया जा रहा था। जो लोग सिवा गालीके बात नहीं करते या जिनकी बातचीत आमतौर पर अशिष्टतापूर्ण होती है, उनके साथ रह सकना आसान काम नहीं है। यदि सरकार अक्लसे काम लेकर साधारण कैदियोंपर अच्छा असर डालने के लिए राजनीतिक कैदियोंके साथ सलाह-मशविरा करके उन्हें ऐसे वातावरणमें रखती तो यह बात समझमें आ सकती थी। लेकिन मैं मानता हूँ कि यह बात व्यावहारिक नहीं है। मैं यह कहना चाहता हूँ कि राजनीतिक कैदियोंको अरुचिकर वातावरणमें रखना उन्हें अतिरिक्त सजा देना है, जिसके वे कदापि पात्र नहीं हैं। उन्हें अलग रखा जाना चाहिए और वे किस तरह रहते आये हैं, यह समझकर उनके साथ तदनुसार बरताव करना चाहिए।

आशा है, सत्याग्रही लोग इसका और अगले अन्य किसी प्रकरणमें मैने जेलके सुधारकी जो हिमायत की है, उसका गलत अर्थ नहीं लगायेंगे। सत्याग्नहियोंको चाहे जैसी असुविधाएँ सहनी पड़ें, उनका इस कारण रोष करना शोभा नहीं देगा। वह तो क्रूरसे-क्रूर व्यवहारके लिए तैयार होकर ही आया है; इसलिए यदि व्यवहार भलमनसीका किया जाये तो ठीक है; यदि न किया जाये तो भी ठीक ही है।

[अंग्रेजीसे]

यंग इंडिया, ८-५-१९२४

१. देखिए खण्ड २३, पृष्ठ ३३८-३९।