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भाषण और प्रस्ताव: दण्ड विषयक धारापर

है तबतक ऐसा कहा जाये तो मुझे इसकी कोई परवाह नहीं। मैं तो अपने आपको देशका एक अदना सेवक मानता हूँ। लेकिन सेवा करनेवाले लोगोंका एक ऐसा वर्ग भी है जो कुछ निश्चित शर्तोंपर ही सेवा करना स्वीकार करता है और ये शर्तें कभी-कभी किसी-किसी व्यक्तिको अधिनायकत्व स्थापित करनेकी इच्छा-जैसी जान पड़ती हैं।

मैं तो ईश्वरका नाम लेकर और उसे साक्षी मानकर अपनी शर्ते आपके सामने रखता हूँ और इतना ही कहता हूँ कि इसमें मेरी इच्छा आपकी सेवा करनेके अलावा और कुछ नहीं है।

[ गुजरातीसे ]
नवजीवन, १७-७-१९२४

१६३. भाषण और प्रस्ताव: दण्ड विषयक धारापर[१]

अहमदाबाद
२८ जून, १९२४

अध्यक्षने कहा: मैंने जिस प्रस्तावका सुझाव रखा था वह केवल ३७के विरुद्ध ६७ मतों से पास हुआ है। जो स्वराज्यवादी बैठक छोड़कर चले गये और जिन्होंने मतदान नहीं किया---यदि उनके मत भी जोड़ लिये जायें तो मेरी जीत बहुत ही कम वोटोंसे होती है। इसलिए मैंने कमेटीको दण्ड विषयक धारा हटा देनेकी सलाह दी है। बैठकमें उपस्थित एक सदस्यने[२] कहा है कि ऐसा करना संविधानकी भावनाके अनुकूल नहीं होगा।

श्री गांधीने इसका उत्तर देते हुए कहा: मैं आपको एक पूर्वोदाहरण देता हूँ। अमृतसर कांग्रेसमें विषय-समितिमें रौलट अधिनियम विरोधी आन्दोलनके दिनोंमें पंजाबमें भीड़ द्वारा किये गये उपद्रवोंके सम्बन्धमें एक प्रस्ताव पास किया गया था; किन्तु वह बादमें मेरे कहनेपर लगभग तुरन्त ही रद कर दिया गया।[३]

 
  1. देखिए पिछला शीर्षक, गांधीजीका भाषण समाप्त हो जानेपर दण्ड विषयक धाराको हटानेके लिए रखा गया संशोधन गिर गया और मूल प्रस्ताव पास कर दिया गया। इसके बाद कमेटीकी बैठक औपचारिक रूपसे स्थगित कर दी गई थी किन्तु उसके तुरन्त बाद ही उसकी बैठक अनौपचारिक रूपसे गांधीजीकी अध्यक्षतामें पुनः बुलाई गई।
  2. शुएब कुरैशीने कहा: सदनके लिए यह उचित नहीं कि वह कुछ ही क्षण पहले पास किये गये अपने प्रस्तावको खुद ही रद कर दे। उनका विचार था कि गांधीजीकी सलाह मानकर सदन एक बुरा उदाहरण सामने रखेगा।
  3. गांधीजीका समर्थन पट्टाभि सीतारामैयाने किया। इसके बाद बैठक औपचारिक बैठकके रूपमें परिवर्तित हो गई। उसकी अध्यक्षता पदेन अध्यक्ष होनेके कारण मुहम्मद अलीने की। तब गांधीजीने दूसरा प्रस्ताव रखा।
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