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कुछ प्रश्न

हानिके भागीदार बननेसे बच जायें। इस तरह सरल भावसे बरताव करनेसे संस्थाकी हानि करनेवाले मनुष्यको और हमको तीनोंको लाभ होगा।

४. यदि किसी स्थानपर मुख्य कार्यकर्ता व्यभिचारी देखनेमें आये तो हमें क्या करना चाहिए?

यह नाजुक और भयंकर प्रश्न है। सभीकी नजर नेताके आचरणपर रहा करती है और किसीके मनमें उसके प्रति द्वेष भी हो सकता है। दुर्बल लोगोंको दूसरोंके अवगुण देखनेके अलावा और कुछ नहीं सूझता। इसलिए आप ऐसी भयंकर अफवाहोंपर कदापि विश्वास न करें। सभी नेताओंके बारेमें जो-कुछ कहा जाता है, उस सभीको सच मान लें तो इस जगतमें एक भी मनुष्य साथ देनेके योग्य न बच रहे। दोष तो सभी मनुष्योंमें होते हैं। तुलसीदासका कहना है कि जड़-चेतन सब दोषमय हैं। सन्तरूपी हंस दोषरूपी वारि-विकारको तजकर गुणरूपी दूध ही ग्रहण करते हैं।[१] लेकिन हम आँखोंसे देखी हुई घटनाको अनदेखी नहीं कर सकते। हमने खुद न देखी हो; किन्तु हमारी इच्छा न रहते हुए भी हमें ऐसे प्रमाण मिल जायें मानो हमने वस्तुतः वह देखी है तब हम क्या करें? यदि हममें नम्रता और निर्भयता हो तो हम वह बात उस नेतासे अवश्य कहें और उससे नेतृत्व छोड़नेका अनुरोध करें। अगर वह वैसा न करे तो हम उसी कारणको बताकर स्वयं उसका त्याग कर दें।

इससे एक महत्त्वपूर्ण सवाल उठता है। जबतक नेता सार्वजनिक जीवनमें और उससे सम्बन्धित कार्योंमें भूल न करे तबतक हम उसके व्यक्तिगत जीवनपर कैसे विचार कर सकते हैं? यदि हम ऐसा करने लगें तो हम सभी नेताओंके चरित्रके चौकीदार बन बैठेंगे और उनको अपना-अपना जीवन अत्यन्त कटु जान पड़ेगा। इसलिए यदि हम नेताके व्यक्तिगत जीवनको सार्वजनिक जीवनसे सर्वथा अलग मानकर उसके व्यक्तिगत जीवनके प्रति बिलकुल उदासीन रहें तो क्या काम नहीं चल सकता? सामान्य रूपसे ऐसी दलील कदाचित् उचित जान पड़े, लेकिन यह हमारे संघर्षके सम्बन्धमें बिलकुल लागू नहीं होती। हमने अपने संघर्षको आत्म-शुद्धिका संघर्ष माना है। हम आत्म-शुद्धिके द्वारा इस आसुरी राजनीतिको नष्ट करना चाहते हैं। इसलिए हमारे साधक और साधन दोनों पवित्र होने चाहिए। हम अपने संघर्षमें व्यक्तिगत जीवन और सार्वजनिक जीवनमें अन्तर नहीं कर सकते। लेकिन हम जानते हैं कि हमारे निजी जीवनका हमारे सार्वजनिक जीवनपर भारी असर पड़ता है। हम सुधारक हैं और सुधारकका व्यक्तिगत जीवन पवित्र होना चाहिए, ऐसी प्राचीन कालकी मान्यता है और यह यथार्थ है। हम यहाँ एक दृष्टान्त देते हैं। हम भोले ग्रामीणोंके बीच काम करते हैं। गाँवकी अनेक जातियाँ नीति और अनीतिका अन्तर नहीं जानतीं। वे तो हमारा स्वागत विश्वासपूर्वक करती हैं। उनकी स्त्रियाँ, बहनें और बेटियाँ कार्यकर्त्ताओंके पास निःसंकोच आती रहती हैं। यदि हमारा एक भी कार्यकर्त्ता इनको

 
  1. जड़ चेतन गुण दो विश्व कीन्ह करतार।
    संत हंस गुन गहहिं पथ, परिहरि वारि विकार॥