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कताईका प्रस्ताव

४५० आदमी रोज एक घंटा कातनेमें लगायें तो फी स्वयंसेवक ३० रु० महीने के हिसाबसे कमसे-कम ५ स्वयंसेवकोंकी गुजरके लायक सूत काता जा सकता है ।

और ५ स्वयंसेवक ४५० पुरुषों और स्त्रियोंके नीचे कांग्रेसका पूरा काम संगठित कर सकते हैं। कार्यक्रमके किसी एक अंगको सफल बनानेके लिए अगर बहुत से लोग सम्मिलित हो जाते हैं तो चाहे एक आदमीकी मेहनतका कुछ भी अर्थ न निकलता हो, फिर भी समष्टि रूपमें उसकी सम्भावनाएँ अपरिमित होती हैं ।

सच्ची भावना से प्रेरित और उत्साही कार्यकर्त्ता तो इतना काम कर दिखा सकते हैं कि दाँतों तले अंगुली दबानी पड़े। इस तरह हिसाब करने के लिए मैं तीन सुझाव रखता हूँ :

१. यदि किसी गरीब जिलेमें कताई प्रधानतः मजदूरीसे कराई जाये तो उसकी गरीबी दूर हो सकती है ।
२. यदि किसी सम्पन्न जिलेमें कताई मुख्यतः स्वैच्छिक हो तो उससे तमाम आवश्यक स्वयंसेवकोंकी गुजर हो सकती है।
३. यदि पढ़ाईवाले दिनोंमें हर पाठशालामें कमसे कम ३ घंटे कताई सम्बन्धी सभी काम कराये जायें तो हर ग्राम-पाठशाला कमसे कम अपना आधा खर्च उसीसे निकाल सकती है ।

कहने की आवश्यकता नहीं कि यदि खादी डाकके टिकटोंकी तरहू आम बिक्रीकी चीज न बन जाये तो यह फल प्राप्त नहीं हो सकता। ऐसे देशमें, जहाँ कि जरूरतसे ज्यादा कपास पैदा होती हो, जहाँके लोग कातते रहे हैं, जिसके पास उसके लिए आवश्यक सरंजाम मौजूद हो, जहाँ बहुत बड़ी तादादमें लोग भूखसे पीड़ित रहते हों और जहाँ केवल कामके संगठनकी ही आवश्यकता शेष है, वहाँ वैसा न करना घोर अपराध है ।

यदि इस कामको सुचारू रूपसे और किफायतके साथ चलाना हो तो प्रान्तीय मन्त्रियोंको तथा दूसरे लोगोंको खादी बोर्डकी हिदायतोंपर पूरी तरह अमल करना होगा। प्रधान कार्यालयोंमें एक दुहरा रजिस्टर रखा जाये जिसमें यथाक्रम उन तमाम सदस्योंके नाम दर्ज रहें जिनके लिए कातना लाजिमी है। तमाम सूतपर गजकी तादाद, वजन और कातनेवालेका नाम तथा अनुक्रम नम्बर लिखा रहे । प्रान्तीय समितियोंको लोगोंको देनेके लिए काफी कपास एकत्र करनी होगी । धुनाईकी भी व्यवस्था करनी होगी। इस तरह यदि सूत पूरी तादाद में पहले ही महीने से भेजना हो, जैसा कि उचित है, तो वक्त नहीं गँवाना चाहिए।

जो लोग कातना बिलकुल न जानते हों वे यदि सिर्फ आधा ही घंटा रोज कातते रहेंगे तो तरक्की नहीं कर पायेंगे। शुरूके कुछ दिनोंमें जबतक कि अँगुलियों-को रफ्त न हो जाये, उन्हें रोज कुछ घंटोंतक कातना होगा ।

[ अंग्रेजीसे ]
यंग इंडिया, १०-७-१९२४