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१९३. पत्र : वा० गो० देसाईको'

आषाढ़ सुदी ८ [१० जुलाई, १९२४]

[१]

भाईश्री वालजी,

अभयचन्दभाईके बारेमें क्या लिखूं, इसी विचारमें बहुत-सा वक्त निकल गया । मेरी समझ में उनसे हिसाब-किताब रखने अथवा सूत तैयार करवानेका काम कराया जा सकता है। मेरी प्रवृत्तियोंसे तो आप परिचित हैं ही, इसलिए आप ही [ उनके लिए उपयुक्त काम ] सुझायें। यदि मैं आपको अपनी कांग्रेसके बाहरकी प्रवृत्तियोंका मैनेजर नियुक्त करूँ तो आप क्या करेंगे ? आपने जिन दो लेखोंके बारेमें लिखा है उनमें से मुझे एक "स्वराज्यमें शिमला" मिल गया है। दूसरा शायद स्वामीके[२] पास हो; उनसे दर्याप्त करूँगा ।

मोहनदासके वन्देमातरम्


मूल गुजराती पत्र (सी० डब्ल्यू० ६०१४) से ।
सौजन्य : वालजी गो० देसाई

१९४. पत्र : वसुमती पण्डितको

आषाढ़ सुदी ९, [११ जुलाई, १९२४]

[३]

चि० वसुमती

तुम्हारा पत्र मिला और भाई शंकरका भी । तुम्हारी तन्दुरुस्ती के बारेमें मैं तो निश्चिन्त हो गया था। अब तो क्या सलाह दूं ? तुम मेरी निगाहके सामने रहो तो मुझे कुछ उपाय सूझे भी, पर वहाँकी जलवायु यहाँ कहाँ है ? मेरी इच्छा तो यह है कि तुम बरसात खत्म होनेके बाद भी लम्बे समयतक हजीरामें रहो। जलवायु परिवर्तन ही सबसे अच्छा रास्ता है ।

इस बीच तुम इतना तो करो ही । दालें कम, चटनी बिलकुल नहीं और सब्जी उबली हुई लो तथा सन्तरे या हरे अंगूर जितने खा सको उतने खाओ। एपो-

  1. १. “स्वराज्य में शिमला" शीर्षक लेख जिसका इस पत्रमें उल्लेख है, ११-९-१९२४ के यंग इंडियामें छपा था। आषाढ़ सुदी ८, १० जुलाई, १९२४ की थी।
  2. २. स्वामी आनन्दानन्द ।
  3. ३. इस खण्ड में गांधीजी द्वारा गंगाबहनको भेजे गये पहले पत्रों और इस पत्र में दिये गये भोजन आदिके निर्देशोंसे पता चलता है कि यह पत्र १९२४ में लिखा गया था। इस वर्ष में आषाढ़ सुदी ९, ११ जुलाई की थी।