पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 24.pdf/४७९

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
४४९
पत्र : मोतीलाल नेहरूको

(२) अगर एक पक्ष ऐसा कोई प्रचार शुरू कर दे तो दूसरे पक्ष को भी विरोधी प्रचार करनेका उतना ही अधिकार है। लेकिन मैं तो दोनोंसे संयमसे काम लेनेको कहूँगा ।[१]
(५) बहुमतके पक्षसे मैं न कुछ 'कर' रहा हूँ और न तबतक कुछ करने के लिए ही तैयार हूँ, जबतक कि उस काम में कताई और ऐसी ही दूसरी चीजें शामिल न की जायें।
(६) अपरिवर्तनवादी लोग चाहे जो करें या न करें, बेशक में ऐसा मानता हूँ कि स्वराज्यवादियोंको हर उचित तरीकेसे अपनी शक्ति बढ़ानेका अधिकार है ।
(७ क) इन सबको कार्यकारिणी संस्थाएँ होना चाहिए। मुझे नहीं मालूम कि आज वे क्या हैं। जैसा कि में आपको बता चुका हूँ, कांग्रेसको अधिक प्रभावकारी बनानेके खयालसे में संविधान में कुछ संशोधन करनेका सुझाव देना चाहूँगा ।
(७ ख) मेरा निश्चित मत है कि अगर कांग्रेसको कुछ प्रभावकारी काम करना हो तो इसकी सभी कार्यकारिणी समितियाँ ऐसे लोगोंके हाथमें ही रहनी चाहिए, जिनका कांग्रेस के कार्यक्रम में पूरा विश्वास हो और जो फिलहाल कांग्रेस कार्यक्रमपर अमल करें।

मेरा खयाल है कि मौलाना मुहम्मद अली आपके प्रश्नोंके उतर देंगे । ३० अगस्तको में बम्बई में रहूँगा । आशा है, आपके पिछले पत्रके[२] उतरमें भेजा गया मेरा कार्ड आपको मिल गया होगा ।[३]

हृदयसे आपका,
मो० क० गांधी

[ अंग्रेजी से ]
महादेव देसाईकी हस्तलिखित डायरी से ।
सौजन्य : नारायण देसाई


२४-२९
  1. १. प्रश्न ३ और ४ के उत्तर उपलब्ध नहीं हैं।
  2. २. अपने इस पत्रकी एक प्रति गांधीजीने मौलाना मुहम्मद अलीको भी भेजी थी। पण्डित मोतीलाल नेहरूने इसका प्रत्युत्तर भी भेजा था। देखिए परिशिष्ट ४ (ख)।
  3. ३. यह उपलब्ध नहीं है।