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२३६. पत्र : जे० बी० पेटिटको

साबरमती
२६ जुलाई, १९२४

प्रिय श्री पेटिट,

मेरे पत्रके उत्तरमें लिखा आपका १७ जूनका पत्र मिल गया था। लेकिन उसका जवाब भेजने में मैंने जान-बूझकर देरी की। बात यह थी कि जेल जानेसे पहले मैंने आपको एक पत्र लिखा था । सोचता था उसमें जो कुछ लिखा था उसका कुछ ब्यौरा मिल जाये । कोशिश की, लेकिन नहीं मिला। श्री चतुर्वेदीको पत्रकी याद है, लेकिन पत्रका पता नहीं लग पाया। आपके पत्रमें श्री बनारसीदासके लिखे एक पत्रका उल्लेख है। श्री बनारसीदासको अच्छी तरह याद है कि मेरे पत्रके उत्तरमें आपने जो पत्र लिखा था उसमें आपने यहाँ दी जानेवाली रकमका आधा भाग देनेका वादा किया था । मेरा तो कहना है कि श्री बनारसीदासको यहाँ पूरे समयतक काम करनेकी जरूरत नहीं है । इतना ज्यादा काम ही नहीं है। अभी स्थिति यह है कि विशेषज्ञ होनेके नाते वे हममें से ज्यादातर लोगोंकी अपेक्षा अधिक काम करते हैं । उन्हें कुछ साहित्यिक दायित्वोंका भी निर्वाह करना पड़ता है, जिससे उन्हें कोई आमदनी नहीं होती और अगर वे बम्बईमें रहकर यह काम करें तो खर्च बहुत आयेगा । आपको मालूम ही है कि उनका रहन-सहन बहुत सादा है। इसलिए महत्वकी दृष्टिसे बम्बई में वे जितना काम कर सके हैं, उसका चौगुना यहाँ करते हैं । उनका तीन-चौथाई समय विदेशोंसे सम्बन्धित काममें लग जाता है । इसलिए मेरे विचारसे यह बात बहुत ठीक होगी कि इस कामके लिए विशेष रूपसे जो राशि निर्धारित कर दी जाये वह इसी कामपर खर्च की जाये । अतः अगर संघ उनको बम्बईमें रखकर मोटी तनख्वाह देनेके बजाय उनके कामके लिए यहीं उन्हें वाजिब रकम दे दे तो उसे सस्ता पड़ेगा । वैसे, जब कभी वहाँ उनकी सेवाकी आवश्यकता हो, उन्हें बेशक बुला लिया जा सकता है ।

आपसे यह निवेदन करनेसे पहले कि आप मेरा पत्र समितिके सामने पेश करें, अगर आप मेरी राय मानें तो मैं आपको यह विश्वास दिलाना चाहूँगा कि मैंने जो बात सुझाई है, वही ठीक है । उत्तरके साथ आप समितिके सदस्योंके नाम भी सूचित कर सकें तो कृपा हो। इससे मैं अपना विचार समितिके सदस्योंके सामने भी रख पाऊँगा ।

हदयसे आपका,
मो० क० गांधी

अंग्रेजी पत्र (एस० एन० ९९७८) की फोटो-नकलसे ।