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२४०. टिप्पणियाँ

आचार्य राय प्रतिदिन कातते हैं

आचार्य रायकी उम्र इस समय साठ सालसे ऊपर है -- तिसपर भी वे कताई-का अभ्यास करते हैं । वे लिखते हैं:

सचमुच चरखके चलनेकी मधुर ध्वनि मेरे लिए शान्तिदायी सिद्ध हुई है । खादो में मेरी श्रद्धा दिन-दिन बढ़ती जाती है और ज्यों-ज्यों मेरा काम आगे बढ़ रहा है त्यों-त्यों चरखा मेरे उत्साहको कायम रखनेवाला अखूट स्रोत बनता जा रहा है ।

यदि आचार्य राय-जैसे अति उद्यमी बड़े-बूढ़े लोग इस प्रकार सूत कातने लगें तो फिर युवा लोग, जिनके पास बहुत समय होता है, सूत क्यों न कातेंगे ? आचार्य रायके उत्साहका कारण समझना आसान है। उन्होंने कितने ही वर्षोंसे अकाल पीड़ित बंगालियोंकी सहायता करने का काम हाथमें लिया है। उस कामको करते हुए उन्होंने देखा है कि अकाल पीड़ित केवल दान देने से तो नीतिभ्रष्ट हो जाते हैं और इससे उन्हें लाभ होने के बजाय हानि होती है। हजारों स्त्री-पुरुषोंको ऐसा कौन-सा काम दिया जा सकता है जिससे उन्हें रोजी मिल सके ? चरखेके सिवा इतनी व्यापक दूसरी कौन-सी वस्तु हो सकती है ? उनकी तीक्ष्ण और परोपकार-रत बुद्धिमें इस बातका आ जाना कठिन न था ।

इस्तीफे

हुबलीकी कांग्रेसके अनेक पदाधिकारियोंने कमेटी के प्रस्तावको देखते हुए इस्तीफे दे दिये हैं । कुछ लोग इस स्थितिसे डर गये हैं, परन्तु मैं तो इसे एक शुभ चिह्न मानता हूँ, क्योंकि इससे समिति के प्रस्तावके प्रति आदर व्यक्त होता है। जिन संस्थाओं- के पास राजदण्ड नहीं है, उनका अस्तित्व केवल उनके सदस्योंकी निष्ठापर ही अवलम्बित रहता है। मैं जानता था कि ऐसे बहुत-से पदाधिकारी हैं जो पंचविध बहिष्कारों को नहीं मानते या उनका पालन नहीं करते और इसीलिए मैंने ऐसा प्रस्ताव रखा था कि ऐसे लोगोंसे अपने पदोंको छोड़नेका अनुरोध किया जाये । यदि ऐसे पदाधिकारी बिना रोष किये और पद छोड़ना उचित मानकर कांग्रेससे निकल जाते हों तो इसमें उनका और राष्ट्र -- दोनोंका लाभ है। उन्होंने उचित कार्रवाई करके अपनी भलमनसाहतका परिचय दिया है और इस्तीफे देकर कांग्रेस कमेटीको शुद्ध किया है । ऐसा होनेपर भी उनकी सेवाएँ तो देशको मिलेंगी ही । यदि वे रोषके वश होकर निकले होंगे तो इसमें उन्हींकी हानि है, क्योंकि इससे उन्होंने सेवा द्वारा लोगों-का जो प्रेम प्राप्त किया है उसके नष्ट हो जानेकी सम्भावना है । परन्तु मुझे जो समाचार मिले है उनके अनुसार तो सब लोग साधुभावसे ही अलग हुए हैं। देशको