पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 24.pdf/५०२

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२५३. पत्र : धरनीधर प्रसादको

२७ जुलाई, १९२४

प्रिय धरनीधर बाबू,[१]

पत्र पाकर खुशी हुई। किसी अलग संगठनमें काम करने के बारेमें आपके विचारसे मैं सहमत हूँ । लेकिन उसमें मेरे बने रहनेका कारण यह है कि मैं किसी अलग संगठनकी स्थापना या कांग्रेसके लगभग एकमत हो जानेकी प्रतीक्षामें हूँ । आशा है, आपकी पारिवारिक झंझटें शीघ्र ही समाप्त हो जायेंगी ।

आपका,
मो० क० गांधी

बाबू धरनीधर प्रसाद
डाकघर सिरी (दरभंगा)
[ अंग्रेजी से ]
महादेव देसाईकी हस्तलिखित डायरीसे ।
सौजन्य : नारायण देसाई

२५४. पत्र : डा० पट्टाभि सीतारामैयाको

२७ जुलाई, १९२४

प्रिय डा० पट्टाभि,

'कलाशाला' के बारेमें मैंने विचार किया है । इस सिलसिले में मैं आपके पत्रकी प्रतीक्षा कर रहा था । अब कार्रवाई शुरू कर रहा हूँ लेकिन आप जितनी जल्दी चाहते हैं, शायद उतनी जल्दी आपको सहायता न पहुँचा पाऊँ । यह भी सम्भव है कि बिलकुल ही असफल हो जाऊँ । क्या आप कांग्रेसकी मार्फत सहायता पानेकी अपेक्षा कर रहे हैं ? क्या इस १०,००० रुपयेकी रकमके बाद आपको और सहायता- की जरूरत नहीं बचेगी या आपको बराबर दूसरे प्रान्तोंकी सहायतापर निर्भर करना पड़ेगा ? दान देनेवालोंके मनमें बात बैठाने के लिए जो जानकारी भेजी जा सकती

  1. १. दरभंगा के प्रसिद्ध वकील और कांग्रेसी ।