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पत्र : मोतीलाल नहेरूको

हो, भेज दीजिये। हाँ, कताई संक्रामक होती है । यहाँ एक भाई तो सारी ही क्रियाएँ खुद करते हुए ५०,००० गज कातनेकी कोशिश कर रहे हैं।

हृदयसे आपका,
मो० क० गांधी

डा० पट्टाभि सीतारामैया
मसूलीपट्टम
[ अंग्रेजीसे ]
महादेव देसाईकी हस्तलिखित डायरी से ।
सौजन्य : नारायण देसाई

२५५. पत्र : मोतीलाल नेहरूको

आश्रम
२७ जुलाई, १९२४

प्रिय मोतीलालजी,

आपके स्नेहपूर्ण पत्रके[१] लिए धन्यवाद । यदि आपने ही मुझे यह न बताया होता कि आपके कोई अन्तरंग मित्र तेज बुखारकी हालत में भी विधान सभा में अपना काम करते ही रहे और उन्होंने डाक्टरोंकी सलाहपर भी वहाँसे आ जाना मंजूर नहीं किया, तो मैं आपकी बात जरूर मान लेता । बहस खत्म होनेके बाद भी वे आराम करने को तैयार नहीं हुए। जब आप अपने ऐसे घनिष्ठ मित्रको भी अपनी बातपर राजी नहीं कर सके तो फिर आप मुझे ही कैसे कर सकते हैं ? बहुत-सी सुलेख पुस्तिकाओं में 'उपदेशसे आचरण श्रेयस्कर होता है' लिखा पाया गया है । यों मेरी तबीयत को लेकर चिन्ता करने जैसी कोई बात नहीं है । यह सच है कि मेरा वजन इतना कम हो गया है कि भय लगता है, लेकिन जब कामका बोझ ज्यादा होता है, मुझसे खाया नहीं जाता। उन बैठकों में लगातार बैठे रहने से भी बड़ी कमजोरी आई । अगर वक्तकी इतनी खींचतान न होती तो गंगा किनारे आकर आराम करनेके आपके निमन्त्रणको मैं कदापि न छोड़ता । लेकिन दिल्ली के लोग मुझे परेशान किये हैं । आश्रमके भी कितने ही नाजुक मामले निबटाने हैं । अगर मुझे वक्त मिले और आपको भी स्नेहपूर्वक उनके बारेमें सुनने की फुरसत हो तो मैं आपको लिखकर मनका बोझ हलका करना पसन्द करूँगा । लेकिन फिलहाल तो इस इच्छाको दबाना ही पड़ेगा । आज मैं आपको एक बहुत जरूरी बात भी लिख भेजना चाहता था, लेकिन कुछ मित्र प्रतीक्षा कर रहे हैं; आज नहीं लिख पाऊँगा । बना तो कल लिखूंगा । काम-काज के

  1. १. देखिए परिशिष्ट ४ ( ख ) ।