पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 24.pdf/५१२

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
४८२
सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

मेरे निजी मित्र हैं । किन्तु मेरे लिए तटस्थ भावसे यह देखना सम्भव नहीं था कि मिल मजदूर -- मेरे ही सहयोगी -- अपनी वह प्रतिज्ञा भंग करें जो उन्होंने मेरी २१ दिनतक गम्भीरतापूर्वक दोहराई थी। उस उपवासका असर बिजली के समान उपस्थितिमें हुआ था । उससे डाँवाडोल मजदूरोंका निश्चय एकदम दृढ़ हो गया था ।

(२) मेरा सिद्धान्त अवश्य ही मुझे मित्र और शत्रुके प्रति समान भावसे प्रेम रखना सिखाता है। किन्तु जबतक शत्रु मित्र नहीं बन जाता तबतक इससे शत्रु-मित्रका भेद नहीं मिटता । श्री जोजेफको लिखा गया पत्र थोड़ा गूढ़ था और प्रकाशनके लिए भी नहीं था । श्री जोजेफ आसानीसे छोड़ी हुई बातोंको समझ ले सकते थे । श्री जोजेफके पत्र में कही गई बात अधिक पूर्ण रूपमें इस प्रकार कही जा सकती है:

कोई भी व्यक्ति अपने सहकर्मीके कार्यों एवं विचारोंमें सुधार करनेके लिए उपवास कर सकता है, किन्तु ऐसे व्यक्तिके कार्यों और विचारोंमें सुधार करनेके लिए नहीं कर सकता जो विरोधमें हो, फिर व्यक्तिगत रूपसे वह कितना ही घनिष्ठ मित्र क्यों न हो। इस प्रकार, यद्यपि पण्डित मोतीलालजी नेहरू मेरे प्रिय मित्र हैं, फिर भी कौंसिल प्रवेश के सम्बन्धमें अपने मत के अनुरूप उनका मत परिवर्तन करनेकी दृष्टिसे में उनके विरुद्ध उपवास नहीं कर सकता । मैंने बम्बईके दंगाइयोंके विरुद्ध उपवास किया था, क्योंकि वे मेरे निजी दोस्त नहीं थे फिर भी वे एक समान उद्देश्यमें मेरे साथी थे । हमें उपवासोंके द्वारा अपने आदर्शोंके अनुरूप लोगोंका मत परिवर्तन करानेका कोई अधिकार नहीं है। वह एक प्रकारकी हिंसा होगी। किन्तु हमारा यह कर्त्तव्य है कि हम उपवास करके उन लोगोंको मजबूत करें जिनके आदर्श हमारे ही समान हैं, किन्तु दबावके कारण जिनके कमजोर पड़ जानेकी आशंका दिखाई देती हो ।

(३) मुझे संयोगवश आयरलैंड के महान् देशभक्त मैक्स्विनीकी मृत्युपर आयोजित एक शोकसभाकी अध्यक्षता करनेका अवसर मिला था।[१] मैंने उसमें अपना यह मत नम्रतापूर्वक व्यक्त किया था कि जनताके सम्मुख इस समय जो तथ्य हैं, मैं उनके बलपर नैतिकताकी दृष्टिसे उपवासको न्यायसंगत नहीं कह सकता । तबसे आजतक मुझे अपना मत बदलनेका कोई कारण नहीं मिला। उस प्रसिद्ध उपवासके राजनीतिक महत्त्वसे मुझे कोई सरोकार नहीं है । कोई यह भी न समझे कि में दिवंगत देश- भक्तकी स्मृतिपर कोई आक्षेप कर रहा हूँ । में तो केवल सत्याग्रहीके रूपमें उपवासकी नैतिकता के बारेमें अपना मत व्यक्त कर रहा हूँ ।

भारतका हिस्सा

एक अमेरिकी महिलाने भारत सरकारकी अफीम सम्बन्धी नीतिके बारेमें मुझे एक लम्बा पत्र लिखा है । इसमें उन्होंने अफीमके व्यवसायकी रोकथाम के लिए निर्मित, ब्रिटिश सोसाइटी द्वारा प्रकाशित विवरणमें से निम्न अंश[२] उद्धृत किया है:

. . .प्लेग, युद्ध और दुर्भिक्ष, ये तीनों मिलकर भी भविष्यके बारेमें ऐसी भयानक आशंका प्रस्तुत नहीं करते जैसा अफीमका व्यसन । जब यह व्यवसाय

  1. १. देखिए खण्ड १८, पृष्ठ ४९४ ।
  2. २. पूरा नहीं दिया जा रहा है ।