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टिप्पणियाँ

चीनके साथ किया जाता था तब ब्रिटिश लोकसभाने इसे नंतिक दृष्टिसे असमर्थनीय कहकर, एकमत होकर इसकी निन्दा की थी, किन्तु भारतको आज भी पांच पूर्वी राष्ट्रोंको उतनी अफीम भेजने की अनुमति है, अफीमकी जितनी मोंग उनकी सरकारें करें । भारत सरकार यह डींग हाँकती है कि वह इन पांच देशों में निजी व्यक्तियोंको अफोम नहीं बेचती, किन्तु करारके अनुसार वह उन्हें इस मादक द्रयते पाट देती है और ये तस्करोंके जरिये चीन पहुँच जाते हैं। ...

अज्ञान

एक मित्रने मेरे पास उत्तरकी अपेक्षा रखते हुए 'गार्जियन' की एक कतरन भेजी है। उसमें हिन्दुस्तान के एक भूतपूर्व पुलिस अधिकारीने हिन्दुस्तान सम्बन्धी मामलों- में अपना सामान्य अज्ञान व्यक्त किया है । समाचारपत्रोंके अनुच्छेदोंको ढूंढना और सुधारना बहुत मुश्किल है। किसी भी आन्दोलनको सफल होनेके पहले अज्ञान और उपहासकी स्थितिमें से जरूर गुजरना पड़ता है । लेकिन मैं यह बात जोर देकर कह सकता हूँ कि यदि असहयोग आन्दोलन रचनात्मक नहीं है तो वह व्यर्थ है । उसका खादी कार्य, उसके प्रयत्न ( यदि वे इस समय असफल होते भी दिखाई दें तो भी कुछ हर्ज नहीं) और अछूतोंमें तथा उनके निमित्त किया जानेवाला उसका कार्य, उसकी राष्ट्रीय शालाएँ, उसकी पंचायतें कायम करनेका प्रयत्न, उसके द्वारा अफीम और शराबखोरी के खिलाफ किया जानेवाला प्रचार और उसकी अकाल और बाढ़से पीड़ित लोगों को दी जानेवाली राहत -- ये सब उसके रचनात्मक कार्यके उदाहरण हैं । परन्तु इस आन्दोलनका उद्देश्य 'ब्रिटिश सरकारकी मेहरबानी' से हिन्दू राज्यकी स्थापना करना नहीं है, बल्कि उसका उद्देश्य यह है कि स्वराज्यकी स्थापना की जाये; जिसका अर्थ है ब्रिटिश राज्यके स्थानपर अर्थात् जनताके प्रति सर्वथा उत्तरदायित्वहीन उन ब्रिटिश या भारतीय प्रशासकोंके स्थानपर -- जो भारत तथा भारतीय जनताके शोषण- के लिए नियुक्त किये गये हैं -- चुने हुए प्रतिनिधियोंकी सरकारकी स्थापना करना। इस संघर्ष के दौरान की गई प्रत्येक गलती के लिए सदैव स्पष्ट तथा पूर्ण प्रायश्चित्त किया गया है। असहयोग आन्दोलन के समान बड़े पैमानेपर किया गया कोई भी अन्य आन्दोलन इस प्रकार हिंसासे मुक्त नहीं रहा । आप अन्य प्रत्येक सम-सामयिक राष्ट्रीय आन्दोलनसे तथा देशभक्ति के नामपर की गई हत्याओं तथा हिंसापूर्ण कार्योंकी सूचीसे भारतीय आन्दोलनकी तुलना तो करें। लेखकने अछूतोंमें ईसाइयों द्वारा किये गये कार्यकी प्रशंसा की है। में भारतमें ईसाइयों द्वारा किये गये कार्यके गुणावगुणोंकी चर्चामें नहीं पड़ना चाहता । ईसाई मजहबका अप्रत्यक्ष परिणाम यह हुआ है कि हिन्दू धर्म में नवचेतना पैदा हो गई है । सुसंस्कृत हिन्दू समाजने अछूतोंके प्रति किये गये अपने गम्भीर पापको स्वीकार कर लिया है। लेकिन ईसाई मजहबका साधारण रूपसे भारतपर जो असर हुआ है उसका सही अन्दाज हमारे बीच साधारण ईसाइयोंके रहन-सहनसे और उसके हमपर पड़नेवाले असरसे लगाना पड़ेगा। मुझे अपनी यह राय जाहिर करते हुए दुःख होता है कि हमपर उसका बड़ा हानिकारक प्रभाव