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१४. उतावला काठियावाड़

अनेक मित्रोंका कहना है कि काठियावाड़ राजनीतिक परिषद्के सम्बन्धमें मेरे द्वारा व्यक्त विचारोंसे कुछ क्षोभ उत्पन्न हुआ है। जबसे मैंने इन तीनों पत्रोंका सम्पादन हाथमें लिया है तबसे मेरा अखबार पढ़ना प्रायः बन्द ही हो गया है। परन्तु मित्रगण तो मेरी चिन्ता रखते ही हैं। वे उन बातोंकी ओर मेरा ध्यान दिलाते रहते हैं जिन्हें जानना मेरे लिए जरूरी है।

मैंने लोगोंको यह कहते हुए भी सुना है: “यह गांधी――अपनी इच्छासे निर्वासित गांधी――श्री पट्टणीके चक्करमें आ गया है और उसने काठियावाड़की जागृतिका सत्यानाश कर दिया है। यदि पट्टणीजी, जो दाँव-पेंचके बलपर ही इस ओहदे तक पहुँचे है, भंगियों और जुलाहोंमें विचरनेवाले लँगोटीधारीको एक दाँवमें चित्त कर दें तो इसमें आश्चर्य क्या है?” जिस प्रकार मैंने इसी अंकमे दूसरी जगह अब्बास साहबके पत्रका भावार्थ दिया है उसी प्रकार यह भी लोगोंके कथनका भावार्थ ही है। ठीक यही शब्द किसीने नहीं कहे। परन्तु पाठक इस बातपर विश्वास रखें कि जो शब्द कहे गये हैं, ऊपर उन्हींका भावार्थ दिया है। बम्बईमें रहनेवाले काठियावाड़ी कहते हैं, “गांधीने तो गुड़-गोबर कर दिया है।"

परन्तु सच बात यह है। पट्टणीजीमें लोग जितने समझते हैं उतने दाँव-पेंच नहीं है। सत्याग्रहीको दाँव-पेंचमें फँसानेके लिए पट्टणीजी-जैसे कुशल काठियावाड़ीको भी दूसरी बार जन्म लेना पड़ेगा, और वह भी सत्याग्रही होकर। सत्याग्रहीके शब्द-कोषमें हार अथवा इससे मिलता-जुलता कोई शब्द नहीं होता। ऐसा कहा जा सकता है कि एक सत्याग्रही दूसरे सत्याग्रहीको हरा सकता है; किन्तु ऐसा प्रयोग करना तो ‘हार' शब्दके अर्थका अनर्थ करना ही माना जा सकता है। जब सत्याग्रही अपनी भूल देखता है तब झुकता है और झुककर भी ऊँचा उठता है। यह उसकी हार नहीं कही जा सकती।

मेरी दृढ़ मान्यता है कि मेरे सामने पट्टणीजीने इस निर्णयतक पहुँचनेमें जो कुछ भी किया है वह सभी उनके और काठियावाड़के लिए शोभनीय है। पट्टणीजीको दाँव-पेंचसे काम लेनेकी जरूरत ही नहीं थी। मैंने जिन कारणोंसे उक्त विचार व्यक्त किये थे, वे सभी कारण मैं पेश कर चुका हूँ। उनके अतिरिक्त कोई अन्य कारण मुझे याद नहीं आता।

यदि मैं किसीके प्रभाव अथवा प्रेमके वशमें आकर सत्यपथ छोड़ दूँ तो मैं जानता हूँ कि मैं किसी कामका नहीं रहूँगा। मुझे आत्महत्या प्रिय नहीं है; अत: मैं एकाएक सत्यपथ छोड़नेकी मूर्खता नहीं कर सकता।

१. भावनगरमें जनवरी १९२५ में आयोजित।
२. नवजोवन (गुजराती), यंग इंडिया और हिन्दी नवजोवन
३. प्रभाशंकर पट्टणी (१८६२-१९३५)।