पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 24.pdf/५४७

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है कि जो व्यक्ति धनवान बननेका इरादा रखता है उसे हाथकते सूतसे कपड़ा बुनने के धन्धे में नहीं पड़ना चाहिए। यह तो देशकी खातिर किया जानेवाला एक महान् प्रयोग है। इसमें तो शूरवीर ही भाग ले सकते हैं। मुझे इतना विश्वास अवश्य है कि इस धन्धे में पड़नेवाला मनुष्य कभी भूखों नहीं मर सकता ।

मेरे साथ बातचीत

एक संवाददाताने मुझे अस्पृश्यता के सम्बन्धमें एक स्वामीजीकी और मेरी बात-चीतका छपा हुआ विवरण भेजा है और पूछा है कि इसमें कुछ सत्य है या नहीं । मैंने यह बातचीत पढ़ ली है और इसे पढ़कर मुझे दुःख हुआ है । मुझे इसकी प्रत्येक पंक्ति में अर्द्ध सत्य ही दिखाई देता है। इसमें मेरे वाक्य तोड़-मरोड़कर रखे गये हैं। मैं अपने अस्पृश्यता सम्बन्धी विचार इतने विस्तारसे व्यक्त कर चुका हूँ कि मैं उनको यहाँ फिर देनेकी कोई जरूरत नहीं समझता। लेकिन जो लोग मुझसे मिलनेके लिए आते हैं उन सबसे मेरी प्रार्थना है कि वे अपनी और मेरी बातचीत प्रकाशित न करें और यदि करें भी तो उसका मसविदा पहले मुझे दिखा लें और तब उसे प्रकाशित करें। पाठकोंसे भी मेरी यह प्रार्थना है कि जो संवाद मेरे द्वारा प्रमाणित न हों, उनमें व्यक्त विचार वे मेरे न मानें। अनेक भाई और बहन मुझसे मिलकर जाते हैं । वे मेरे अथवा मेरे विचारोंके सम्बन्धमें जो कुछ लिखें यदि मैं उसे पढ़ने अथवा उसके दोषोंको सुधारनेका दायित्व अपने सिरपर ले लूं तो मुझे अपना बहुत-सा समय इसी काम में लगाना पड़ेगा। मुझे विश्वास है कि मेरे समयका ऐसा अपव्यय कोई नहीं चाहेगा। मैं स्वयं उसके लिए कतई तैयार नहीं हूँ । इसलिए जो मुझपर दयालु हों उनके लिए अच्छा रास्ता यही है कि वे मेरे साथ हुई बातचीत कदापि प्रकाशित न करें। जो मुझपर दयाभाव न रखते हों उन्हें भी मेरे साथ हुई बात-चीत प्रकाशित नहीं करनी चाहिए क्योंकि वे मेरी बात निर्दयताके कारण समझ ही नहीं पायेंगे। लेकिन यदि निर्दयी लोग मेरी विनती न मानें तो समझदार पाठकोंको चाहिए कि ऐसे लोग जो कुछ लिखें, उसे वे प्रामाणिक न समझें ।

[ गुजरातीसे ]
नवजीवन, ३-८-१९२४