पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 24.pdf/५४९

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२७६. पत्र : इन्द्र विद्यावाचस्पतिको

श्रावण सुदी ४ [४ अगस्त, १९२४][१]

चि० इन्द्र,

तुमारा खत मीला है । मेरे क्षेत्रसे बाहर मुझको ले जाना चाहते हो ? शिवाजी महाराज के बारेमें मैं क्या लीख सकता हूं? मुझे कहते हुए शर्म आती है कि जो-कुछ मैंने विद्यार्थी समयमें पढ़ा है उससे ज्यादा कुछ भी उनके लीये में नहीं जानता ।

मोहनदास गांधीके आ०

मूल पत्र (सी० डब्ल्यू ० ४८५९ ) से ।
सौजन्य : चन्द्रगुप्त विद्यालंकार

मोहनदास गांधीके आ०

२७७. पत्र : वसुमती पण्डितको

श्रावण सुदी ४ [४ अगस्त, १९२४][२]

चि० वसुमती,

तुम्हारा पत्र मिला । तुम चिन्तासे जितना दूर रहोगी तुम्हारी तन्दुरुस्ती उतनी ही सुधरेगी। रात भर पानी में भिगोये हुए काले अथवा लाल मुनक्के खाया करो । उन्हें साफ करने के बाद ही पानी में भिगोना । फूल जानेपर उनका जो पानी बचे उसे कुनकुना करके पी लिया करो। उसे मुनक्कों समेत भी गर्म किया जा सकता है । मैं तुम्हारे हजीरामें रहने की व्यवस्था कर रहा हूँ ।

बापूके आशीर्वाद

बहन वसुमती,
मूल गुजराती पत्र (सी० डब्ल्यू० ४५२) से ।
सौजन्य : वसुमती पण्डित
  1. १ और
  2. २. डाकखानेकी मुहर ५ अगस्त, १९२४ की है।