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धेलेकी दवा देकर रुपया लेना चाहता है । उन्होंने पश्चिमकी शोधक शक्तिको तो नहीं अपनाया पर उसके धनके लोभका अनुसरण अवश्य किया है। वे पुराने श्लोकोंको रट-रटाकर दवा देते और रोगोंको घटानेके बदले बढ़ाते रहते हैं । वे अखबारोंमें तरह-तरहके विज्ञापन छपवाकर हम रोग पीड़ित लोगोंको ललचाते हैं और हमें सदाके लिए दवाका और साथ ही अपना गुलाम बना लेते हैं। यदि वे हिमालयमें जाकर बसें और नई-नई खोज करें और हमें संयमी बनानेका प्रयत्न करें तो इससे उनका भी कल्याण हो और हमारा भी । जो काम सौ दवाएँ नहीं कर सकतीं वहीं काम एक दवा[१] कर सकती है, यह हम उनसे सीखें । आज पहाड़ या तो अमीरोंके लायक रह गये हैं या फकीरोंके । मध्यम वर्गके भाग्य में तो अनेक दवाएँ पी-पी कर जैसे-तैसे जिन्दगी काटना बदा है ।

मिलकी दुर्घटना

अहमदाबादमें अभी हालमें जो एक मिल ढह गई थी, उसकी जाँच एक सरकारी समिति कर रही है। इस समितिका कार्य क्षेत्र तो बहुत संकुचित है, उसकी अपेक्षा मिल-मालिकका कर्त्तव्य कहीं अधिक है। मिल-मालिक संघका कर्त्तव्य तो उससे भी बहुत ज्यादा है और कुछ अंशोंमें मजदूर संघका कर्त्तव्य इन सभीसे अधिक है।

सरकारी समिति क्या करती है, यह बात अलग है; किन्तु मिलके मालिकोंका कर्त्तव्य तो स्पष्ट है कि जो परिवार निराश्रित हो गये हैं उनका वे पूरा भरण-पोषण करें। दुर्घटना किसी भी कारणसे हुई हो; उसमें बेचारे मजदूरोंका तो कोई भी हाथ न था । मिलकी इमारतको बनाने में भी उनका हाथ नहीं था । इस स्थितिमें चाहे मिल मालिक कानूनन बाध्य न भी हों, किन्तु वे धर्मतः इसपर बाध्य हैं कि निराश्रित परिवारोंका भरण-पोषण करें, घायल लोगोंकी सार-सँभाल करें और भविष्य में इमारतकी मजबूती के बारेमें अधिक सावधानी रखें।

मिल-मालिक संघका कर्त्तव्य सभी मिल मालिकोंकी प्रतिष्ठाकी रक्षा करना है । सभी मिलोंकी इमारतोंको ठीक हालतमें रखनेकी जिम्मेदारी उनकी है । उसे चाहिए कि वह निष्पक्ष वास्तु- विशेषज्ञोंसे प्रत्येक मिलकी इमारतकी मजबूतीकी जाँच कराये और उसका प्रमाणपत्र ले; यदि किसी इमारतमें खराबी हो तो उसे सुधरवानेकी व्यवस्था की जाये । उसे यह जाँच भी करनी चाहिए कि इस मिल मालिकने मिलके जख्मी मज दूरोंकी सार-सँभाल और निराश्रित परिवारोंके निर्वाहकी उचित व्यवस्था की है या नहीं ।

मजदूर संघकी जिम्मेदारी बहुत है और नाजुक है। मजदूरोंके हितोंका ध्यान रखना उसका विशेष धर्म है । यह भय सदा ही रहता है कि मिल-मालिक इसे एक उलटा काम मानें फिर भी मजदूर संघको मजदूरोंकी जीवन-रक्षा के लिए उचित कदम उठाना ही चाहिए । मिल मालिकोंकी मार्फत ऐसी कार्रवाई करवाना तो स्वाभाविक और पहला कदम है। किन्तु यदि उनसे सहायता न मिले तो भी उसको उचित कार्रवाई अवश्य करनी चाहिए। किन्तु मैं इस सम्बन्धमें विस्तृत विचार 'मजदूर

  1. १. मूलमें 'दवा' ही है ।