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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

सन्देश'[१] की मार्फत ही व्यक्त करना चाहूँगा । इसलिए 'नवजीवन' का स्थान नहीं लेता । मैं केवल इतना ही कहता हूँ कि मिल मालिक मजदूर संघकी स्थितिको विषम न बनायें और यह समझकर कि मजदूर संघ के व्यवस्थापक उनका अहित नहीं चाहते बल्कि हित ही चाहते हैं, मजदूर संघको मजदूरोंके हित-रक्षकके रूपमें सहायता दें और उससे जो आवश्यक हो वह सहायता लें।

आवकारलायक या आवकारदायक ?

शिमला निवासीने[२] लिखा है, आपने जैसे 'तल्लीन' के[३] सम्बन्धमें सुधार स्वीकार कर लिया वैसे क्या आप 'आवकारदायक'[४] शब्दको न सुधारेंगे? मैंने तो यह सुधार लेखमें ही दिया है, दायकका अर्थ है देनेवाला, लायकका अर्थ है योग्य । इस अर्थ में सरकारका अत्याचार आवकारलायक[५] माना जाना चाहिए। आवकारदायक नहीं । ऐसी भूलें तो न जाने कितनी होती होंगी। ऐसी भूलोंके लिए मैं नेक सलाह देता हूँ कि 'नवजीवन के पाठक भूलचूक सुधार करके ही 'नवजीवन' पढ़ें ।

सिखानेकी सुविधा

कहा जाता है कि यदि चरखे आदिकी सुविधा मिले तो अहमदाबादमें बहुतसे भाई और बहन सूत कातना सीखना चाहते हैं। इस तरह की कोई असुविधा न हो; इस दृष्टिसे भाई लक्ष्मीदासने निम्न सूचनाएँ दी हैं:[६]

[ गुजरातीसे ]
नवजीवन, १०-८-१९२४

२९७. माला या चरखा ?

'नवजीवन' में एक भाईका एक रोषपूर्ण पत्र प्रकाशित हुआ था । उसमें उसने मेरे अधिकांश कार्यक्रमों और मोटे तौरपर मेरी जीवन-चर्याका विरोध प्रदर्शित किया है । एक मित्रने 'यंग इंडिया' के पाठकोंके लाभार्थ उस लेखका तथा उसका जो मैंने उत्तर लिखा था, अनुवाद कर दिया है। उत्तर यहाँ दिया जा रहा है, पत्र नहीं दे रहे हैं; क्योंकि आपत्तियाँ जो उठाई गई थीं, उत्तरसे स्पष्ट हो जाती हैं ।[७]

धर्म सीधी लकीर नहीं; बल्कि विशाल वृक्ष है । उसमें करोड़ों पत्तोंमें से दो पत्ते भी एक-से नहीं हैं। उसकी प्रत्येक टहनी दूसरीसे जुदा है। उसकी एक भी

  1. १. मजदूर संघ, मजूर-महाजन अहमदाबाद, द्वारा प्रकाशित पत्रिका ।
  2. २. पत्र लेखकका उपनाम ।
  3. ३. देखिए " मेड़ताका खेड़ता ", १५-६-१९२४ ।
  4. ४. स्वागत करनेवाला ।
  5. ५. स्वागत योग्यके लिए गुजराती प्रयोग ।
  6. ६. यहाँ इनका अनुवाद नहीं दिया गया है।
  7. ७. इस लेखका १४-८-१९२४ के यंग इंडिया में जो अनुवाद प्रकाशित किया गया था उसके साथ यह प्रस्तावना भी थी।