३२८. पत्र : डा० सैफुद्दीन किचलूको
साबरमती
१५ अगस्त, १९२४
एक गुमनाम संवाददाताने मुझे 'अर्जुन' अखबारकी एक कतरन भेजी है । मैंने उसका अनुवाद उर्दूमें करा लिया है। पढ़कर इसमें कुछ सच्चाई हो तो मुझे उससे अवगत करानेकी कृपा करें ?
हृदयसे आपका, मो० क० गांधी
- महादेव देसाईकी हस्तलिखित डायरीसे ।
- सौजन्य : नारायण देसाई
३२९. पत्र : मोतीलाल नेहरूको
साबरमती
१५ अगस्त, १९२४
पत्रके लिए धन्यवाद देता हूँ ।
मैं अपने मनकी सारी बात आपके सामने रख रहा हूँ ।
मैं जितना ही सोचता हूँ मेरी अन्तरात्मा बेलगाँवमें सत्ताके लिए होनेवाली रस्साकशी के खिलाफ उतना ही अधिक विद्रोह करती है । परन्तु में कौंसिलोंके कार्य- क्रमके झमेलेमें अपने को नहीं डालना चाहता । यह तभी हो सकता है जब स्वराज्य-वादी कांग्रेसपर छा जायें या फिर वे कांग्रेससे हट जायें। आपको और हमारे मित्रों-को इनमें से जो रास्ता ठीक जँचे, मैं उसीपर चलनेके लिए बिलकुल तैयार हूँ । मैं कांग्रेस में रहता हूँ तो कौंसिलों के समर्थक उससे बाहर रहें। में तभी आपको मदद पहुँचा सकता हूँ; और यदि वे लोग कांग्रेसमें रहते हैं तो फिर मुझे कांग्रेससे व्यवहारतः बाहर हो जाना चाहिए । तब मेरी जो स्थिति १९१५ से १९१८ तक थी में बड़ी खुशीसे उसी स्थितिमें रह सकूंगा । मेरा उद्देश्य स्वराज्यवादियोंकी शक्तिको कभ करना नहीं है और उनके काममें अड़चन डालनेका तो है ही नहीं । आप रास्ता