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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

वह है कहाँ? यह ऐक्य व्याख्यानोंसे सम्पन्न होनेवाला नहीं है। मेरी कमजोर कलम और जबान भी क्या कर सकती है? हर कौमको यह समझ लेना चाहिए कि ऐक्यमें ही हरेकका हित है, हरेकके धर्मको रक्षा है; और उन्हें आपसमें शुद्ध प्रेम रखना चाहिए। उनमें धर्मान्धताकी जगह सहनशीलता आनी चाहिए और उन्हें सबसे बड़ी बात तो यह सीखनी चाहिए कि धर्मको निमित्त बनाकर या धर्मके नामपर एक दल दूसरे दलपर बलात्कार नहीं कर सकता। यदि हिन्दू और मुसलमान इतनी बातका भी पालन करें तो दूसरी कौमें अपने-आप निर्भय हो जाती हैं। बोहरोंका नाम अलग लेनेकी जरूरत तो कतई नहीं होनी चाहिए। वे भी मुसलमान हैं। यदि मुसलमान हिन्दुओंसे लाठियाँ लेकर लड़ना भूल जायें तो वे आपसमें लड़ना भी भूल जायेंगे। इसका अर्थ यह है कि यदि हिन्दुओं और मुसलमानोंके बीच सच्ची यानी दिली सफाई हो जायेगी तो एक ही धर्मके जुदे-जुदे फिरकोंके बीच भी सफाई हो जायेगी। और यदि उसमें सफलता न मिली और हर मौकेपर एकको दूसरेसे लड़नेकी ही नौबत आती रही तो फिर हमें सदाके लिए गुलामी पसन्द करनी पड़ेगी। तब सरकार बहादुर चिरंजीव रहे और हमें एक-दूसरेके गलेपर छुरी फेरने से रोकती रहे", सभी हिन्दुओं और मुसलमानोंका यह नया कलमा और नया धर्म होगा। देखना है कि हिन्दुओं और मुसलमानों--दोनोंमें से किसी एकमें भी अक्ल है या नहीं। आजकी हालत अधिक दिनोंतक नहीं टिक सकती; यह एक लाभ है। दोनों जातियाँ चार-छः महीने में जो निश्चय करेंगी उससे प्रकट होगा कि हिन्दुस्तानके भाग्यमें अगले पचास साल और गुलामी बदी है या थोड़े ही समयमें स्वराज्य मिलनेवाला है।

अन्त्यज परिषद्

गोधरा परिषद्के बादसे हम (गुजरातमें) हर साल अन्त्यज परिषद् करते आये है। परन्तु इस वर्ष उसका महत्त्व अधिक है। इसका एक कारण तो यह है कि मामा फडके उसके अध्यक्ष हैं; दूसरा यह है कि मैं जेलसे छूटकर आ गया हूँ। मैंने बारडोली और गुजरातमें चाहा था कि अस्पृश्यता तुरन्त ही मिट जाये। परन्तु वह अभीतक मिट नहीं सकी है। इसमें दैवके सिवा किसको दोष दें? अस्पृश्यताका पाप हिन्दू जातिकी रग-रगमें पैठ गया है। फलस्वरूप हम पापको ही पुण्य मान बैठे हैं। जिस बातको सारा संसार पाप-रूप मानता है और जिसके कारण हिन्दू जाति आज सारे संसारमें तिरस्कृत है, हमें उसमें कोई दोष दिखाई ही नहीं देता। पेटलाद (गुजरात) के पास एक दुर्घटना हुई है। उसके सम्बन्धमें एक महाशय लिखते हैं:

ऐसी दुर्घटना आज भी हो सकती है और वह भी पेटलाद स्टेशनपर! यह कोई विरल घटना नहीं है। ऐसी क्रूरता जहाँ-तहां देखने में आती ही रहती है। इस

१. सन् १९१८ को पहली परिषद्।

२. गुजरातमें आनन्द-खम्भात लाइनपर एक रेलवे स्टेशन।

३. पत्र यहाँ नहीं दिया जा रहा है इसमें एक वैश्य यात्री द्वारा किसी अन्त्यज यात्रीके क्रूरताके साथ पोटे जानेका वर्णन था।