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परिशिष्ट

यह निश्चित राय है कि सार्वजनिक रूपसे रचनात्मक कार्यकी पृष्ठभूमि न रहनेसे कौंसिलोंके अन्दरका हमारा काम भी इतना प्रभावशाली सिद्ध नहीं होगा । हमें अपने कामके अनुमोदन और उसके समर्थन के लिए विधान सभाओं में नहीं उनसे बाहर जनताका मुँह जोहना चाहिए; जनताके समर्थनके बिना हम कौंसिलों सम्बन्धी अपनी नीतिपर भी कारगर ढंगसे अमल नहीं कर सकेंगे। हमारी राय में यह बिलकुल सच है कि रचनात्मक कार्यको विधान सभाओंके भीतर और बाहर दोनों ही ओरसे कार्यका पारस्परिक समर्थन मिलना चाहिए तभी उस समर्थनमें वह शक्ति पैदा होगी जिसके बलपर हम चलना चाहते हैं । हम इस सिलसिले में महात्मा गांधी के सविनय अवज्ञा सम्बन्धी सुझावको बिना किसी संकोचके स्वीकार करते हैं। हम उनको विश्वास दिला सकते हैं कि जैसे ही हम देखेंगे कि सिवाय सविनय अवज्ञाके नौकर-शाहीकी स्वार्थपूर्ण हठधर्मीका और कोई इलाज नहीं रह गया है उसी क्षण हम विधान सभाओंसे अलग हो जायेंगे और यदि उस समयतक देश सविनय अवज्ञाके लिए तैयार नहीं हो पायेगा तो हम इसके लिए देशको तैयार करनेमें उनका पूरा-पूरा हाथ बँटायेंगे। तब हम बिना किसी शर्त के उनका मार्गदर्शन स्वीकार कर लेंगे और उनके झण्डे के नीचे आकर कांग्रेस संगठनके जरिए काम करने लगेंगे जिससे कि हम सम्मिलित रूपसे सविनय अवज्ञा आन्दोलनको एक ठोस आधारपर खड़ा कर सकेँ ।

दूसरी बात यह कि हमें देश-भरके मजदूर और किसान संगठनोंकी सहायता करके कांग्रेसके कामको और अधिक बल पहुँचाना चाहिए। मजदूर समस्या तो वैसे हर देशमें हमेशा ही एक काफी कठिन समस्या रही है; परन्तु हमारे देश में कठिनाइयाँ और भी ज्यादा हैं। एक ओर तो हमें संगठनका कोई ऐसा तरीका निकालना चाहिए जिसके जरिए हम पूँजीपतियों और भूस्वामियों द्वारा होनेवाले मजदूरोंके शोषण को बन्द कर सकें; दूसरी ओर हमें इस बातकी भी सतर्कता रखनी चाहिए कि ऐसे संगठन बेहिसाब और अनुचित माँगें सामने रखकर कहीं खुद ही उत्पीड़न के साधन न बन बैठें। मजदूरोंका संरक्षण तो किया ही जाना चाहिए, लेकिन औद्योगिक उपक्रमोंका संरक्षण भी जरूरी है । हमारे संगठनको शोषण के विरुद्ध दोनों ही को संरक्षण देना चाहिए और 'ट्रेड यूनियन कांग्रेस' को इस ढंगसे संगठित किया जाना चाहिए कि वह इस उपयोगी लक्ष्यका निर्वाह कर सके। हमारा निश्चित मत है कि दूरदर्शितासे काम लिया जाये तो इन दोनोंके और देशकी आम जनताके भी वास्तविक हित एक ही हैं।

हमें इस बातकी प्रसन्नता है कि हमें महात्मा गांधीकी राय के साथ-ही-साथ अपने विचार भी देश के सामने प्रस्तुत करनेका यह अवसर मिला; हमें भरोसा है कि भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेसके इन दोनों दलोंके बीच कुछ मतभेदों के बावजूद एक अनिवार्य और मूलभूत एकता मौजूद है । वह चाहे विधान सभाओंके अन्दर हो या उनसे बाहर, दोनों ही दल रचनात्मक कार्यक्रमपर अमल करनेकी आवश्यकता महसूस करते हैं । हमारा दृढ़ विश्वास है कि महात्मा गांधी और स्वराज्य पार्टीके बीच- की सफल मैत्रीका बीज इसी तथ्यमें निहित है । हमारे ये प्रयत्न किसी समान दिशा-