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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

'बजट' तैयार करनेवालोंपर ही उसका कोई नियन्त्रण है । उसको न तो राजस्व वसूल करनेका अधिकार है और न उसे व्यय करनेका । अतः हम पूछना चाहते हैं कि तब ऐसे बजटको स्वीकार करना और उसे स्वीकृत करनेके भागीदार बनना किस सिद्धान्तके अनुसार हमारा कर्तव्य ठहरता है ? हमारा मत है कि जबतक यह दुर्व्य- वस्था बदली नहीं जाती तबतक सभी विधान मण्डलोंमें ऐसे 'बजटों' को अस्वीकृत कराने की कोशिश करना स्पष्ट ही हमारा एक कर्तव्य हो जाता है। निःसन्देह देशके अनेक आत्मसम्मानी व्यक्ति हमारे इस मतका समर्थन करते हैं ।


(२) हम नौकरशाही द्वारा अपनी शक्तिको दृढ़ बनाने के लिए पेश किये गये सभी वैधानिक प्रस्तावोंको अस्वीकृत करानेके अपने प्रयत्न जारी रखेंगे। हम मान सकते हैं कि ऐसे चन्द विधानोंका परिणाम कभी-कभार कुछ अच्छा भी निकल सकता है, पर हमारा स्पष्ट मत है कि नौकरशाही की दुर्दमनीय शक्तियोंको और अधिक दृढ़ता प्रदान करनेसे कहीं अच्छा है कि ऐसी छोटी-मोटी सुविधाओंका अस्थायी तौरपर त्याग ही किया जाये ।
(३) हम राष्ट्रीय जीवनके स्वस्थ विकासके लिए आवश्यक सभी प्रस्तावों, विधानों और विधेयकों को पेश करने और उनके फलस्वरूप नौकरशाहीको विस्थापित करनेके अपने प्रयत्न जारी रखेंगे। महात्मा गांधीने अपने वक्तव्यमें जो सुझाव रखा है, हम उसे हृदयसे स्वीकार करते हैं और हमारा खयाल है कि उन्होंने कांग्रेस के रचनात्मक कार्यक्रमके समर्थन में जिन प्रस्तावोंका उल्लेख किया है, स्वराज्यवादीदलको उन्हें स्वीकार कर लेना चाहिए। हम आत्मनिर्भरता और नौकरशाही द्वारा खड़ी की गई बाधाओंके प्रतिरोधके जिस सिद्धान्तपर अबतक अमल करते रहे हैं, उसका तकाजा है कि कांग्रेसके रचनात्मक कार्यक्रमको अपना लिया जाये, और यदि कांग्रेसका रचनात्मक कार्य असहयोग-सिद्धान्त के अनुरूप है तो हमारे ये प्रस्ताव भी हालाँकि ये विधान सभाओं में रचनात्मक कार्यकी रूपरेखा निश्चित करते हैं, उसी तरह उसके उतने ही अनुरूप हैं ।
(४) हम सभी शोषणकारी कार्योंमें बाधा डालकर जनताके धनका भारतसे बाहर जाना बन्द करनेके इसी सिद्धान्तपर आधारित एक सुनिश्चित आर्थिक नीतिका अनुसरण करते रहेंगे ।

इस नीतिको कारगर बनानेके लिए हमें केन्द्रीय और प्रान्तीय विधान सभाओं-के सदस्योंको निर्वाचनके आधारपर सुलभ हर पदको ग्रहण करके उसपर काम करना चाहिए। हमारी राय यह है कि हमें निर्वाचनके आधारपर सुलभ सभी पदोंपर ही नहीं बल्कि जहाँ कहीं इस महत्त्वपूर्ण समस्याकी ओर अपने दलके सदस्योंका ध्यान आकर्षित करना सम्भव हो वहाँ प्रत्येक समिति में भी शामिल होकर काम करना चाहिए। अपने दलके सदस्योंसे हमारा अनुरोध है कि वे जितनी जल्दी हो सके इस सम्बन्ध में निर्णय दे दें ।

विधान सभाओं के बाहर हमारी नीति यह रहेगी :

हम सबसे पहले तो महात्मा गांधी के रचनात्मक कार्यक्रमका हार्दिक समर्थन करेंगे और कांग्रेस के जरिए उस कार्यक्रमपर दोनों दल मिलकर अमल करेंगे। हमारी