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जेलके अनुभव -- ११ ९१ एक्सपीरिएन्स'; हॉपकिन्स - कृत 'ऑरिजिन ऐंड इवोल्यूशन ऑफ रिलीजन'; लेकी-कृत 'यूरोपीयन मोराल्स'; विनोबा- कृत 'महाराष्ट्र-धर्म' (मराठी); होम्स-कृत 'फ्रीडम ऐंड ग्रोथ '; हैकेल- कृत 'इवोल्यूशन ऑफ मैन'; रवीन्द्रनाथकी 'मुक्तधारा' (गुजराती अनुवाद); रवीन्द्रनाथ- कृत 'डूबतुं वहाण' (गुजराती); मौलाना शिबलीकी लिखी पैगम्बर साहबकी जीवनी (उर्दू); डा० मुहम्मद अलीकी कुरान-सम्बन्धी कृति; विवेकानन्द - कृत राजयोग ' ; चम्पकराय जैन- कृत ' कन्फ्लुएन्स ऑफ रिलीजन्स'; निकल्सन- कृत 'मिस्टिक्स ऑफ इस्लाम'; पॉल कैरस-कृत 'गॉस्पेल ऑफ बुद्ध'; राइस डेविसका 'लेक्चर्स ऑन बुद्धिज्म'; अमीर अली कृत 'स्पिरिट ऑफ इस्लाम'; लॉज-कृत 'मॉडर्न प्रॉब्लेम्स'; वाशिंग्टन इरविंग - कृत 'मुहम्मद'; 'स्याद्वाद मंजरी' (हिन्दी) ; अमीर अली-कृत 'हिस्ट्री ऑफ द सेरेसन्स'; गीज़ो-कृत 'यूरोपीयन सिविलिज़ेशन ' ; शिबली - कृत 'अल फारूक (उर्दू); मोटले-कृत राइज ऑफ द डच रिपब्लिक '; 'म्यूजिंग्स ऑफ सेंट टेरेसा'; राजम् अय्यर - कृत 'वेदान्त '; 'उत्तराध्ययनसूत्र' (हिन्दी) ; 'रोशीकुशियन मिस्ट्रीज़ '; 'डायलॉग्स ऑफ प्लेटो'; शिबली - कृत अल- कलाम ' ; वुड्रुफ - कृत 'शाक्त ऐंड शक्ति'; ' भगवती-सूत्र' (गुजराती, अधूरी) । ' 4 लेकिन पाठक यह न मान लें कि ये सब पुस्तकें मैंने अपनी पसन्दसे पढ़ी थीं । इनमें से कुछ तो निकम्मी थीं और यदि मैं जेलसे बाहर होता तो उन्हें हरगिज न पढ़ता; कुछ परिचित और अपरिचित मित्रोंकी भेजी हुई थीं और मुझे लगा कि कमसे- कम उनकी भावनाका खयाल करके तो उन्हें पढ़ ही लेना चाहिए । यरवदा जेलमें अंग्रेजी पुस्तकोंका संग्रह बुरा नहीं कहा जा सकता । उनमें कुछ तो सचमुच अच्छी पुस्तकें थीं। उदाहरण के लिए, फेररकी 'सीकर्स ऑफ्टर गॉड', 'लूशियनकी 'ट्रिप्स टु द मून', अथवा जूल बर्नकी 'ड्रॉप्ड फ्रॉम द क्लाउड्स - ये सब अपने-अपने ढंगकी उत्तम पुस्तकें थीं । फेररकी पुस्तकमें माकर्स ओरेलियस, सेनेका और एपिक्टेटसके जीवन-चरित्रके उत्तम पक्ष देखनेको मिलते हैं । यह प्रेरणाप्रद पुस्तक है । लूशियनकी पुस्तक एक बढ़िया शिक्षाप्रद व्यंगात्मक कृति है । जूल बर्न कहानीके रूपमें विज्ञान सिखाता है । उसका ढंग निराला है, जिसका अनुकरण नहीं हो सकता । 2 इस बीच अनेक ईसाई मित्र मेरा बहुत खयाल रखते थे। उन्होंने अमेरिका, इंग्लैंड और भारत से भी मुझे बहुत-सी पुस्तकें भेजीं। मुझे स्वीकार करना चाहिए कि इसमें उनकी भलमनसाहत ही थी, परन्तु उनकी भेजी हुई अधिकांश पुस्तकें मुझे अच्छी नहीं लगीं । काश, मैं उनकी भेजी हुई पुस्तकों के बारेमें उन्हें प्रसन्न करनेवाली - कोई बात लिख सकता । परन्तु जीमें न होते हुए, वैसा लिखूं तो अनुचित और अ- सत्य होगा। ईसाई धर्मके बारेमें कट्टरपंथी ईसाइयोंकी लिखी हुई पुस्तकोंसे मुझे सन्तोष नहीं होता । ईसामसीहके जीवनके लिए मेरे मनमें अत्यन्त आदर है । उनकी नीति- विषयक शिक्षा, उनका व्यावहारिक ज्ञान, उनका बलिदान इन सबके प्रति मेरे मनमें बड़ी श्रद्धा है, परन्तु ईसाई धर्म-पुस्तकोंमें जो यह उपदेश दिया गया है कि ईसा सर्वस्वीकृत अर्थमें ईश्वरके अवतार थे या है अथवा वे ईश्वरके एकमात्र पुत्र थे अथवा हैं, इसे मैं स्वीकार नहीं करता। दूसरेका पुण्य भोगनेका सिद्धान्त में स्वीकार नहीं करता । ईसाका बलिदान एक नमूना है और हम सबके लिए आदर्श-स्वरूप है । Gandhi Heritage Porta