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भाषण: सूरतकी सार्वजनिक सभामें

सार-सँभाल में ही आपका सारा धन और बल खप जाये? इससे तो बेहतर यह है कि उस तन्त्रको नष्ट कर दिया जाये। यदि तन्त्र अनायास ही हाथमें रहे तो भले ही बना रहे। यदि इसमें आपकी सारी शक्ति खर्च होती है तो इसका आपके हाथ से निकल जाना ही श्रेयस्कर है।

[गुजराती से]
नवजीवन, १४-९-१९२४

६१. भाषण: सूरत के कांग्रेसी कार्यकर्त्ताओंके समक्ष

[५ सितम्बर, १९२४][१]

गांधीजी यहाँ कुछ ही घंटे ठहरे। इस दौरान उन्होंने कांग्रेसी कार्यकर्त्ताओंसे स्थानीय मामलों और खासकर आगामी नगरपालिका चुनाव तथा राष्ट्रीय प्राथमिक स्कूलों की हालतके सम्बन्धमें बातचीत की। उन्होंने केवल उन्हीं उम्मीदवारोंको चुनने और खड़ा करने की सलाह दी जो राष्ट्रीय नीतिका समर्थन करनेका वादा करें। उन्होंने उन सभीसे एक होकर काम करनेको कहा, भले ही वे अलग-अलग दलोंके हों। राष्ट्रीय स्कूलोंके बारेमें गांधीजीने बताया कि अगर कांग्रेसी लोगोंको उन्हें चलाने के लिए काफी पैसा न मिले तो अच्छा होगा कि वे उन्हें बन्द कर दें। लेकिन वे उन्हें चलानेके लिए कर्ज लेनेकी नीतिके विरुद्ध थे।

[अंग्रेजी से]
बॉम्बे क्रॉनिकल,१६-९-१९२४

६२. भाषण: सूरतकी सार्वजनिक सभामें

५ सितम्बर, १९२४

कहाँ गया सूरतका तेज, संगठन और शौर्य? ये सब सूरतमें फिर कब आयेंगे, जिससे कि सूरतसे उनका प्रवाह गुजरातमें पहुँचे और गुजरातसे हिन्दुस्तानको मिले? जब मैं देखता हूँ कि मेरी इच्छानुसार काम नहीं हो रहा है, सब दाँव उलटे पड़ रहे और पारस्परिक वैमनस्य बढ़ रहा है, तब मैं बहिष्कार और सविनय अवज्ञाकी बात कैसे कर सकता हूँ? सूरतमें खादी और मिलके कपड़ेके झगड़ेका तो प्रश्न ही नहीं था; यहाँ तो ऐसी व्यवस्था करनी है जिससे खादी ज्यादासे ज्यादा तैयार हो। इसलिए मैं आपसे कहता हूँ कि सार्वजनिक सभाओं द्वारा जगत् में किसीको स्वराज्य नहीं मिला है। स्वराज्यके लिए तो जी-तोड़ मेहनत करनी पड़ती है। अपनी घर-

  1. गांधीजी बम्बई से अहमदाबाद जाते हुए सूरत गये थे।