पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 25.pdf/१३४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
१००
सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

गृहस्थी हम भाषणों, लेखों और विवेचनोंसे नहीं चलाते। कुटुम्बका काम तभी चल सकता है जब कुटुम्बके लोग अपने-अपने हिस्सेका काम करें। यदि हमें स्वराज्य लेना है तो हरएकको कसकर काम करना शुरू कर देना चाहिए।

यदि हिन्दू अथवा मुसलमान दोनोंमें से एक भी बिलकुल सीधे हो जायें तो एकता हमारे हाथ में है। लेकिन यदि बदला लेनेकी इच्छा हो तो उचित यही है कि हम अपने युगमें एकताकी बात ही न करें। यदि हमें स्वराज्य लेनेकी गरज है तो दोनोंमें से किसी एकको सीधा होना ही चाहिए। लेकिन कहा जाता है कि हिन्दू डरपोक और कमजोर है। डरपोकपन दूर करनेका रास्ता बदला लेना नहीं है। डरपोक दोनों कौमें हैं और इसी कारण दोनों गुलाम हैं। सरकार दोनोंको गुलाम मानती है। इसलिए सच्चे अर्थों में केवल एक नहीं, दोनों कौमें डरपोक है और उनका यह डरपोकपन अहिंसाके सिवा और किसी उपायसे दूर नहीं किया जा सकता। हाँ यह अहिंसा वीरोंकी होनी चाहिए। वीरताके लिए क्या लाठी चलानेकी जरूरत है? उसके लिए तो मरना सीखनेकी जरूरत है। हम हिन्दुओंके मन्दिर तोड़े जानेकी बात सुनते हैं। यदि पुजारी मन्दिरोंको टूटता हुआ छोड़कर भाग जायें, तो मन्दिर किस तरह बचाया जा सकता है? आप कहेंगे कि आक्रमणकारी और देव-मन्दिर-भंजककी आजिजी क्यों की जाये? मैं तो आपसे कहता हूँ कि आप मरकर मूर्तिकी रक्षा करें। मारनेवाला जब देखेगा कि सामने कोई मरकर रक्षा करने के लिए उद्यत बैठा है तब वह समझ जायेगा।

आप मारकर मूर्तिकी रक्षा नहीं कर सकते। मुसलमान भी हिन्दुओंको मारकर इस्लामकी रक्षा नहीं कर सकेंगे। यदि वे मारकर इस्लामकी रक्षा करना चाहते हैं तो इसमें सन्देह नहीं कि इससे इस्लाम नेस्तनाबूद हो जायेगा। दुनियामें एक भी धर्म दूसरोंको मारकर अपने अस्तित्वको बनाये नहीं रख सकता। मैं तीस वर्षके अपने चिन्तन और अनुभवके आधारपर कहता हूँ कि जो लोग धर्म और देशकी रक्षा करना चाहते हैं, उनके लिए अहिंसाके अतिरिक्त और कोई उपाय नहीं है। तलवार उठानेवालेकी मृत्यु तलवारसे ही होती है। आजतक कोई भी धर्म तलवारके बलपर नहीं चल सका है और न ही चल सकता है। इस्लाम फकीरोंके और हिन्दू-धर्म तपस्वियोंके कारण टिका रहा है। हिन्दू-धर्ममें ऐसे ऋषि-मुनि हुए हैं जिन्होंने मृत्युका रहस्य बताया है। आप अपने शास्त्रोंको अच्छी तरहसे सोच-समझकर पढ़ें। आप मुझे इस चर्चामें न डालें कि रामने क्या किया। पार्वतीने अनेक विघ्न-बाधाओंके बीच तपस्या की, द्रौपदीने भी उस समय अपनी रक्षा तपस्याके द्वारा ही की, जब धर्मराज युधिष्ठिर, बलवान भीम और गाण्डीवधारी अर्जुन टुकर-टुकर देख रहे थे।

मुसलमानोंको मैं यह सन्देश मौलाना अब्दुल बारी साहब और अली-भाइयों द्वारा दे सकता हूँ। लेकिन हिन्दू होनेके नाते मुझे यह बात प्रत्येक हिन्दूसे कहनेका अधिकार है। आज हिन्दू और मुसलमान दोनों ही ईश्वरमें अपनी श्रद्धा खो बैठे हैं, आत्मविश्वास खो बैठे हैं और गुण्डोंकी सहायतासे बहादुर बनना चाहते हैं। इससे न तो हिन्दू-धर्मकी रक्षा होगी और न इस्लामकी ही। ये दोनों तो तपश्चर्या और