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सन्देश: 'साँझ वर्तमान' को

फकीरीसे ही बच पायेंगे। आप अपना डरपोकपन दूर कर दें। जमनालालजीके हाथमें चोट आई,[१]इससे मुझे प्रसन्नता हुई। यदि झगड़े-फसादको शान्त करते हुए वे मर भी जाते तो भी मुझे प्रसन्नता ही होती, क्योंकि उससे हिन्दू-धर्मकी ज्यादा रक्षा होती। उनको अकस्मात् ही पत्थर लगा। लेकिन जो पत्थरोंकी बौछारमें जाकर खड़ा होता है उसे केवल पत्थर ही नहीं लगेगा बल्कि वह मर भी सकता है। यदि जमनालालजी मर जाते तो इससे लड़नेवाले दोनों पक्ष लज्जित होते और रोते।

इस तरहसे बहादुर बनकर आप मुसलमानोंके दिलोंको जीतें। मैं अखाड़ोंका विरोधी नहीं हूँ। शरीर कमजोर हो तो उसमें सुधार करने के लिए आप भले ही अखाड़े खोलें। लेकिन हिन्दू-मुस्लिम विवादका निर्णय करनेके लिए नहीं। उसके निर्णयका उपाय तो तप और सत्य ही है। महाभारतकारने एक बहुत जोरदार बात कही है "तराजूके एक पलड़ेमें आप सहस्रों यज्ञोंको रखें और दूसरेमें सत्य; तो भी सत्यका पलड़ा भारी होगा।" मैं चालीस वर्ष के अपने अनुभवके आधारपर कहता हूँ कि यह बात सच है। जब हम इन साधनोंसे विजय प्राप्त करेंगे तब हिन्दुओं और मुसलमानोंमें परस्पर विरोध नहीं रहेगा।

[गुजरातीसे]
नवजीवन, १४-९-१९२४

६३. सन्देश: 'साँझ वर्तमान' को[२]

[६ सितम्बर, १९२४ से पूर्व]

नये सालके उपलक्ष्यमें 'साँझ' के पारसी पाठकोंकी अपनी शुभकामना भेजते हुए मैं इसके सिवा और कुछ नहीं सोच पाता कि भारतीय जन-साधारणकी गरीबी दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही है। हम पढ़े-लिखे लोग अपने निर्वाह और आमोद-प्रमोदके सभी साधन इन्हींसे प्राप्त करते हैं। जो भयंकर तथ्य हमारे सामने हमें चुनौती देते खड़े हैं उनकी ओरसे अगर हम अपनी आँखें बन्द कर लेते हैं तो हमारी यह खुशी एक झूठी खुशी होगी। क्या 'साँझ' के पारसी पाठक नये सालमें वास्तविक प्रसन्नता प्राप्त करना नहीं चाहेंगे? इसका सबसे अच्छा रास्ता यही है कि वे अपना ध्यान चरखे तथा उसके उत्पादन सूतकी ओर लगायें। यदि वे मातृभूमिके नामपर कुछ कताई करें तो गरीबोंको कताईके लिए प्रोत्साहन मिलेगा तथा खादी सस्ती होगी। यदि वे हाथ-कते सूतसे तैयार खादीका उपयोग करेंगे तो वे खादीकी बिक्रीमें सहायता पहुँचायेंगे।

[अंग्रेजीसे]
बॉम्बे क्रॉनिकल, ६-९-१९२४

  1. यह चोट जमनालाल बजाजको नागपुर के हिन्दू-मुस्लिम दंगोंमें लगी थी।
  2. इसके पारसी नववर्ष अंकके लिए।