पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 25.pdf/१३७

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६६. पत्र: गोपबन्धु दासको

६ सितम्बर, १९२४

प्रिय गोपबन्धु बाबू,

आपका पत्र मिला। यदि सार्वजनिक धनका गबन करनेवाले...तथा अन्य लोग पैसेवाले हों, तो मैं बिना किसी हिचकके यही सलाह दूँगा कि मुकदमे दायर कर दिये जायें। बहिष्कारका मतलब यह नहीं है कि हम नकसान उठायें। हम अपनी सारी निजी सम्पत्ति भले ही गँवा दें, पर न्यासकी सम्पत्तिकी रक्षा तो करनी ही चाहिए। मैंने निरंजन बाबूको सलाह दी है कि मुकदमेकी कार्यवाही शुरू कर दें और इस्तीफा दे दें। बादमें उनको फिरसे चुना जा सकता है। आशा है, आप अब बिलकुल ठीक होंगे। अमृतलाल ठक्करने मुझे बताया है कि आपके स्कूलको सहायता दरकार है। कृपया जमनालालजीको लिखें।

हृदयसे आपका,
मो० क० गांधी

[अंग्रेजीसे]

महादेव देसाईकी हस्तलिखित डायरीसे।

सौजन्य: नारायण देसाई

६७. पत्र: मोतीलाल नेहरूको

साबरमती
६ सितम्बर, १९२४

प्रिय मोतीलालजी,

मुझे कल सूरतमें आपका पत्र मिला। मैंने आपके तारका संक्षिप्त उत्तर[१] बम्बईसे भेज दिया था। कल मैंने आपके पत्रके उत्तरमें एक संक्षिप्त तार भेजा है। मुझे दुःख है कि मेरे पत्रसे आपको चोट पहुँची। कृपया क्षमा करें। मैंने जो-कुछ सुना था, उसे अपनेतक रखनेकी अपेक्षा आपको बतला देना क्या ज्यादा अच्छा नहीं था? आप विश्वास कीजिए, जो लोग सदा मेरे आसपास रहते हैं, वे शायद ही कभी मुझसे बातचीत करते हों? . . .[२]

  1. देखिए "तार: मोतीलाल नेहरूको", २-९-१९२४ को या उसके बाद।
  2. साधन-सूत्रमें यहाँ कुछ पंक्तियाँ छोड़ दी गई है।