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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

फिर भी मेरा प्रस्ताव आपके सामने है और मैं चाहता हूँ कि उसपर उसके गुण-दोषके आधारपर विचार किया जाये। क्या आप उसपर विचार करके कृपया मुझे अनुगृहीत करेंगे? आपको मालूम ही है कि मैं श्रीमती बेसेंट और सर्वश्री जयकर तथा नटराजनके[१] साथ इसके बारेमें चर्चा कर चुका हूँ। पूनामें स्वराज्यवादियोंसे भी इसके बारेमें बात कर ली है।

प्रस्ताव स्वीकृत हो या नहीं, पर मेरा यह निर्णय अन्तिम है कि मतदानकी स्थिति पैदा करके प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष किसी भी रूप में मैं कांग्रेसके विभाजनका कारण नहीं बनूँगा। जो भी हो, सबकी सहमतिसे होना चाहिए।

मो० क० गांधी

[पुनश्च:]

मुझे आपका तार मिल गया है। ऊपरके पत्रमें जो-कुछ कहा है, उससे ज्यादा मुझे कुछ नहीं कहना है।

[अंग्रेजीसे]

महादेव देसाईकी हस्तलिखित डायरीसे।

सौजन्य: नारायण देसाई

६८. पत्र: जवाहरलाल नेहरूको

६ सितम्बर, १९२४

प्रिय जवाहरलाल,

तुम्हारा तार मिला। तुम्हारे पिताजीका पत्र पहले ही आ चुका था। मुझे सचमुच बहुत दुःख है। मैंने तो सोचा था कि मैं अपनी भावनाकी गहराई व्यक्त करते हुए एक निर्दोष-सा पत्र लिख रहा हूँ।...[२]

इसलिए मैंने तुम्हारे पिताजीसे अनुरोध किया है कि वे प्रस्तावके गुण-दोषोंके बारेमें मुझे अपनी राय दें। मैं कई स्वराज्यवादी मित्रों के साथ इसपर चर्चा कर चुका हूँ। मुझे इस कठिनाईसे निकलनेका दूसरा कोई सम्माननीय मार्ग नहीं सूझ पड़ता। लिखो कि इसके बारेमें तुम क्या सोचते हो।

नाभासे जो जवाब[३] आया है, वह उसके अपने नजरियेसे आखिरी है। इसका बस एक यही जवाब हो सकता है कि गिरफ्तारीकी चुनौती स्वीकार कर ली जाये। लेकिन आजकलकी हालत देखते हुए, वैसा करना अक्लमन्दी नहीं मालूम पड़ता।

  1. बम्बईसे निकलनेवाले इंडियन सोशल रिफॉर्मरके सम्पादक।
  2. यहाँ साधन-सूत्रमें कुछ पंक्तियाँ छोड़ दी गई हैं।
  3. देखिए "टिप्पणियों", ११-९-१९२४, उप-शीर्षंक "असन्तोषजनक उत्तर"।