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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

यदि हिन्दू और मुसलमान दोनों बाहुबलका ही रास्ता ग्रहण करना चाहते हों तो फिलहाल शीघ्र स्वराज्य मिलने की आशा छोड़ देना ही उचित है। यदि तलवारके रास्तेसे ही शान्ति प्राप्त करनी हो तो दोनोंको पहले खूब लड़ लेना होगा और इसमें खूनकी नदियाँ बहेंगी। दो-चार लोगोंका खून करने या दस-पाँच मन्दिर तोड़नेसे फैसला नहीं हो सकता। मैं संगठनके खिलाफ हूँ भी और नहीं भी हूँ। यदि संगठनका मतलब अखाड़े खोलना और अखाड़ों के द्वारा हिन्दू गुण्डोंको तैयार करना हो तो यह हालत मुझे तो दयाजनक ही मालूम होती है। गुण्डोंके द्वारा धर्मकी अथवा अपनी रक्षा नहीं की जा सकती। यह तो एक आफतके बदले दूसरी, अथवा उसके सिवा एक और आफत मोल लेना हुआ। यदि ब्राह्मण, वैश्य आदि ही अखाड़ोंके द्वारा अपनी शारीरिक उन्नति करें और अपनी रक्षा करने के लिए तैयार हों तो मुझे कुछ भी आपत्ति नहीं है। परन्तु मुझे तो यकीन है कि उन्हें लड़ाई लड़नेके लायक शक्ति प्राप्त करने में बहुत समय लगेगा। अखाड़ोंके लिए अखाड़े खोलना बिलकुल ठीक है। किन्तु मुसलमानोंको लड़ाईमें शिकस्त देने के लिए अखाड़े खोलनेकी बात हमारी समस्याका हल नहीं है--इसमें मुझे जरा भी शक नहीं।

यदि हम मुसलमानोंके दिलको जीतना चाहते हों तो हमें तपश्चर्या करनी होगी। हमें पवित्र बनना होगा। हमें अपने दोषोंको दूर करना होगा। अगर वे हमसे लड़ें तो हमें उलटकर प्रहार न करते हुए हिम्मतसे मरने की कला सीखनी होगी। डर कर औरतों, बाल-बच्चों और घर-बारको छोड़कर भाग जाना और भागते हुए मर जाना, मरना नहीं कहाता; बल्कि उनके प्रहारके सामने खड़े रहना और हँसते-हँसते मरना हमें सीखना पड़ेगा।

मैं मुसलमानोंको भी यही सलाह दूँगा। परन्तु यह अनावश्यक है, क्योंकि वे डरानेवाले माने गये हैं। सामान्य अनुभव यह है कि वे मारने में बहादुर हैं। इसलिए उन्हें हिन्दुओंके बाहुबलसे बचनेका रास्ता दिखानेकी जरूरत नहीं रह जाती। उनसे तो यही विनती करनी होगी कि भाई आप अपनी तलवार म्यानमें रखें। अपने गुण्डोंको अपने कब्जे में रखकर शान्तिसे काम लें। मुसलमानोंको हिन्दुओंसे दूसरे भय भी चाहे हों पर उनको हिन्दुओंसे आर्थिक भय तो अवश्य है। इसके सिवा उन्हें बकरीदके दिन अपने धार्मिक कृत्यमें रुकावट पड़नेका भी भय है। परन्तु उन्हें हिन्दुओंके हाथों पिटनेका डर हरगिज नहीं है। इसलिए मैं तो उनसे यही कहूँगा, आप लाठी या तलवारके बलपर इस्लामकी रक्षा नहीं कर सकते। लाठी या तलवारका युग अब चला गया। धर्मोकी कसौटी उनके माननेवालोंकी पवित्रता ही होगी। यदि आप अपने धर्मकी रक्षा गुण्डोंके हाथोंमें सौंप देंगे तो आप इस्लामको भारी नुकसान पहुँचायेंगे। फिर इस्लाम फकीरोंका, खुदापरस्त लोगोंका धर्म न रहेगा।

यह तो साधारण विचार हुआ। मौलाना हसरत मोहानी कहते हैं कि मुसलमानोंको हिन्दुओंकी खातिर गायकी रक्षा करनी चाहिए और हिन्दुओंको उन्हें अछूत न मानना चाहिए। वे कहते हैं कि उत्तर भारतमें मुसलमान भी अस्पृश्य गिने जाते हैं। मैंने मौलाना साहबसे कहा कि मैं तो ऐसी बातमें सौदा या अदला-बदला न करूँगा। मुसलमान यदि हिन्दुओंकी खातिर गायकी रक्षा करना अपना धर्म समझें