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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

आये हैं वहाँ उन्हें बजानेका अधिकार होना चाहिए। जहाँ झगड़ेकी सम्भावना हो और तथ्योंके बारेमें मतभेद हो वहाँ हिन्दू और मुसलमान दोनों पक्षोंको पंचोंसे निर्णय करा लेना चाहिए।

जहाँ अदालतने बाजे बजानेकी मुमानियत की हो, वहाँ हिन्दू लोग कानूनको अपने हाथोंमें न लें। मुसलमानोंको भी हिन्दुओंका बाजा बजाना जबरदस्ती बन्द कराने की जिद छोड़ देनी चाहिए।

जहाँ मुसलमान बिलकुल न मानें अथवा जहाँ हिन्दुओंके साथ जबरदस्ती होनेका अन्देशा हो और जहाँ अदालतसे बाजे बजानेकी मनाही न हो वहाँ हिन्दुओंको निडर होकर बाजे बजाते हुए निकलना चाहिए और मुसलमान चाहे कितनी ही मारपीट करें उन्हें उसे सहन करना चाहिए। इस तरह जितने बाजे बजानेवाले मिलें सब वहाँ अपनी बलि दे दें। इससे उनके धर्म और आत्म-सम्मान दोनोंकी रक्षा होगी।

जहाँ हिन्दुओंमें इतना आत्मबल न हो, वहाँ उन्हें अपने बचावके लिए मारपीट करनेका अधिकार है। मरकर अथवा मारते हुए मरकर धर्मकी रक्षा करनेकी जहाँ जरूरत दिखाई दे वहाँ दोनों दलोंको अदालत या सरकारकी शरणमें जानेका विचार छोड़ देना चाहिए। यदि एक पक्ष सरकारकी या अदालतकी सहायता ले तो भी दूसरेको वैसा न करना चाहिए। यदि अदालतमें गये बिना काम ही न चले तो भी वहाँ झूठे सबूत हरगिज न दिये जायें।

मारपीटका यह कानून है कि पेट भरके मार खाने और मारने के बाद दोनों लड़नेवाले ठंडे पड़ जाते हैं और दूसरोंकी सहायता लेने नहीं जाते। जिस जगह दोनों पक्षोंने लड़नेका निश्चय किया हो वहाँ उन्हें पीछे बदला चुकानेका या औरोंकी सहायता लेनेका विचार छोड़ देना चाहिए।

उन्हें एक मुहल्लेका झगड़ा दूसरे मुहल्ले में न ले जाना चाहिए और स्त्रियों, बूढ़ों, अपंगों और बालकोंपर तथा शान्त रहनेवाले लोगोंपर हमला न करना चाहिए। यदि इतने नियमोंका पालन होता रहेगा तो भी समझा जायेगा कि कुछ तो मर्यादा रखी गई है।

मुझे आशा है कि गुजरातके हिन्दू और मुसलमान सोचेंगे, समझेंगे और शान्तिकी रक्षा करेंगे। मुझे आशा है कि उमरेठमें दंगा होनेका भय अकारण सिद्ध होगा और दोनों जातियाँ पहलेसे मिलकर अपने मतभेद मिटा लेंगी।

डरकर भाग खड़ा होना, मन्दिर छोड़कर चला जाना या बाजे बजाना बन्द कर देना या अपनी रक्षा न करना, यह धर्म नहीं है, मनुष्यता नहीं है, यह तो नामर्दी है। अहिंसा वीरताका लक्षण है--भीरु, डरपोक मनुष्य तो यह जान भी नहीं सकता कि अहिंसा किस चिड़ियाका नाम है।

दोनों कौमोंके सर्वसाधारण लोग समझदारीसे काम लेने लगें, हिम्मत रखना सीखें, जो डरते हैं वे डर छोड़ दें और जो डराते हैं वे डराना छोड़ दें--इसमें तो अभी समय लगेगा। इस बीच दोनों जातियोंके समझदार लोगोंको हर झगड़ेके मौकेपर पंचायत के सिद्धान्तका पालन करनेका प्रयत्न करना चाहिए। समझदार वर्गकी