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असफलता के कारण

हालत नाजुक है। परन्तु उसे चाहिए कि वह अपनी सारी शक्ति सर्व साधारणको शान्त बनाये रखने में ही लगाये।

[गुजरातीसे]
नवजीवन, १४-९-१९२४

९८. असफलताके कारण

हम निर्धारित अवधिके भीतर स्वराज्य प्राप्त नहीं कर सकेंगे, इतना ही नहीं, बल्कि ऐसा लगता है कि हम जिस स्थितिको समाप्त करना चाहते थे वह स्थिति दिन-प्रतिदिन और अधिक जड़ पकड़ती जा रही है। हमें स्वराज्य तो नहीं मिला, उलटे अब हमें स्वराज्यसे डर लग रहा है। हिन्दू कहते हैं, हमें स्वराज्य नहीं चाहिए; मुसलमान कहते हैं, हमें स्वराज्य नहीं चाहिए और ब्राह्मणेतर कहते हैं, हमें स्वराज्य नहीं चाहिए; तब स्वराज्य चाहिए किसको? जो राष्ट्र स्वतन्त्रतासे डरता है वह क्या राष्ट्र हुआ? तथापि आज हमारी स्थिति कुछ ऐसी ही विचित्र हो गई है।

तो अब हम इसके कारणोंपर विचार करें। यदि कोई मनुष्य बिना सोचे-समझे तेज दवा लेता है तो उसका परिणाम उलटा होता है। असहयोग भी तेज दवा है, इसलिए इसका परिणाम भी यही हुआ है। इसका उपयोग असावधानीसे नहीं किया जा सकता। यदि इसका उपयोग करनेमें कोई भूल हो जाये तो गम्भीर हानि हो सकती है। पुत्र पितासे, पत्नी पतिसे और प्रजा राजासे सामान्य रूपसे तो सहयोग ही करते हैं। दोनोंके बीच प्रेमभाव होता है। लेकिन कभी-कभी ऐसे प्रसंग भी आ जाते हैं जब दोनोंमें परस्पर असहयोग होता है और वह होना भी चाहिए। यदि वह असहयोग द्वेषपूर्ण हो तो त्याज्य है, पाप-रूप है। पिता-पुत्रके बीच वैर नहीं हो सकता। लेकिन अगर वैर हो जाता है तो वह सामान्य वैरसे भयंकर होता है। अंग्रेज और जर्मन चचेरे भाई हैं, लेकिन जब वे परस्पर लड़ पड़े तब एक तो तबाह हो गया। हमने ऐसे हिंसात्मक असहयोगको त्याज्य माना और इसलिए अपने असहयोगको 'शान्तिपूर्ण' असहयोग कहा और यह विशेषण जोड़कर उसके स्वरूपको बिलकुल ही बदल डाला। हमारे शान्तिपूर्ण असहयोगको विनाशक नहीं बल्कि रचनात्मक होना चाहिए था। प्रेमकी लड़ाईमें से विष नहीं निकलना चाहिए। हम तो अंग्रेजोंके साथ भी सारा वैर मिटाकर उन्हें मित्र बनाना चाहते थे, लेकिन वैसा नहीं हो सका। हमारे असहयोग में "शान्तिपूर्ण" विशेषण गौण होकर रह गया। हमारा असहयोग असमर्थ लोगोंका असहयोग सिद्ध हुआ। तिसपर भी इसके कई सुन्दर परिणाम निकले। हममें उत्साह बढ़ा, जनताको अपनी सत्ताका भान हुआ और ऐसा भी लगा कि एक अमोघ शस्त्र हमारे हाथ आ गया; लेकिन हमें उसका पूरा-पूरा उपयोग करना नहीं आया।

इसलिए हम पीछे हटे। इसमें ऊपर-ऊपरसे प्रेमका रंग-मात्र चढ़ा हुआ था; वह उड़ गया, असहयोग रह गया और हम सरकारके विरुद्ध पूरी तरह सफल न हो