लड़ाईमें नहीं उतरूँगा और जो लोग शान्तिपूर्ण असहयोगके पक्षमें हैं, उन्हें भी मैं यही सलाह देता हूँ। हमारे बीच जो गहरी दरार पड़ गई है, वह ऐसा करने से ही पट सकेगी। मैं तो केवल स्वराज्यवादियोंको ही नहीं वरन् सब पक्षोंको कांग्रेसमें भाग लेते हुए देखना चाहता हूँ। सरकार के विरुद्ध हमारा असहयोग तो तभी चमकेगा जब जनताका बड़ा हिस्सा आपस में हार्दिक सहयोग करेगा।
तब क्या कोई ऐसा कार्यक्रम है, जिसके सम्बन्धमें सभी पक्ष एकमत हो सकें? यह कार्यक्रम जनताके लिए आवश्यक होना चाहिए। मेरी दृष्टिसे ऐसे कार्यक्रममें तीन बातें आती हैं; खादी, हिन्दू-मुस्लिम एकता और हिन्दुओंके लिए अस्पृश्यता निवारण।
ये तीनों बातें ऐसी हैं जिनमें से यदि कोई एक भी असिद्ध रह जाये तो मैं स्वराज्य असम्भव मानता हूँ। अतः मेरे सुझाव ये हैं:
१. कांग्रेस एक वर्षके लिए पाँच बहिष्कारोंमें से चारको मुल्तवी रखे और केवल विदेशी कपड़ेका बहिष्कार कायम रखे। कपड़े के अलावा ब्रिटेनके दूसरे मालका बहिष्कार भी वह रद कर दे।
२. कांग्रेस उपर्युक्त तीन कार्योंके अलावा मौजूदा राष्ट्रीय पाठशालाओंको चलाये और यदि सम्भव हो तो नई पाठशालाओंकी स्थापना करे। वह इनके अलावा किसी दूसरे काममें न पड़े।
३. स्वराज्यवादी और दूसरे दल इस कार्यक्रमके बाहर जो काम करें उनमें कांग्रेस न तो उनकी मदद करे और न कोई विघ्न डाले।
४. कांग्रेसकी कार्यकारिणी-समितियों आदिमें कांग्रेस में शामिल किसी भी दलके लोगों के चुने जा सकनेकी छूट होनी चाहिए।
५. कांग्रेसका सदस्य बननेके लिए चार आना चन्दा देनेकी शर्त हटा दी जानी चाहिए और उसके बदले प्रत्येक सदस्यके लिए प्रति मास अपने हाथका कता २,००० गज सूत देने और प्रतिदिन आधा घंटा सूत कातनेकी शर्त होनी चाहिए। सब सदस्य शुद्ध खादी पहननेवाले होने चाहिए।
इनमें पाँचवें सुझावके अलावा किसी और सुझावके बारेमें कोई मतभेद नहीं हो सकता। यदि हम विदेशी कपड़े के बहिष्कारको तुरन्त पूरा करना चाहते हैं तो मैं पाँचवें सुझावको आवश्यक मानता हूँ। खादीका प्रचार अपेक्षाकृत कम होनेके मुख्य कारण निम्नलिखित हैं:
१. आलस्य;
२. [चरखेके सम्बन्धमें] दक्षताका अभाव;
३. गरीबोंके दुःखके प्रति उपेक्षा भाव।
जिन्हें बहुत ज्यादा काम हो, उन लोगों के बारेमें भी ऐसा नहीं कहा जाता कि वे देशके लिए प्रतिदिन आधे घंटेका समय नहीं निकाल सकते। हमें जो व्यर्थ ही समय खोने की आदत पड़ गई है, उसे कमसे कम कांग्रेसमें शामिल होनेवाले लोगोंको त्याग ही देना चाहिए। चरखेके काम में दक्ष न होनेसे हम चरखेका प्रचार नहीं कर सकते।