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असफलता के कारण

नहीं है। लेकिन प्रत्येक कातनेवालेके लिए घर बैठे-बैठे आध घंटे श्रम करना और थोड़ी-सी रुई दान देना अवश्य ही बहुत आसान और मामूली बात है। इस तरह बहुत-से लोगोंके अल्पश्रम और अल्पदानसे जनतामें ऐसी शक्ति आ सकती है, जिससे वह बड़े-बड़े काम कर दिखाये। इसीसे मैं अपने सुझावको कीमती समझता हूँ। और इस बातको कांग्रेस स्वीकार करे या न करे, लेकिन मेरी कामना यह अवश्य है कि गुजरात इसपर स्वेच्छासे अमल करने लगे। जो प्रान्त, जो ताल्लुका इसके अनुसार कार्य करेगा वह थोड़े ही समयमें इस प्रवृत्तिके शुभ परिणामोंको देख सकेगा।

तब क्या असहयोगियोंका असहयोग बन्द ही हो जायेगा? ऐसी शंका किसीको नहीं होनी चाहिए। असहयोगको माननेवाले असहयोगी तो अपने असहयोगको बढ़ायेंगे ही; लेकिन वे अपने मतसे विरुद्ध मत रखनेवालोंको भी अपने दिलोंमें स्थान देंगे। यह कोई नई बात नहीं है। मैं शुरू से ही यह बात समझाता आया हूँ। लोगोंने इस बातको नहीं समझा इसीसे मैं असहयोग आन्दोलन और बहिष्कारको मुल्तवी करके तथा सहयोगियोंको अपने साथ मिलानेका सुझाव देकर प्रेमके सिद्धान्तपर अमल करना चाहता हूँ। अदालतोंके बहिष्कारमें विश्वास रखनेवाले वकील बेशक वकालत न करें, किन्तु उन्हें वकालत करनेवाले वकीलोंका कांग्रेस में आदरपूर्वक स्वागत करना चाहिए। बहिष्कारके मुल्तवी किये जानेका अर्थ ही यह है कि बहिष्कारवादीको सहयोगियोंकी निन्दा करने का कोई अधिकार नहीं रहा। यही बात कौंसिल प्रवेशके लिए लागू होती है। कांग्रेसमें कौंसिल-प्रवेश के पक्षपातियों और विरोधियों, दोनोंको एक-सा स्थान और एक-सा अधिकार होगा। उन्हें बाँधनेवाली उपर्युक्त चार बातें होंगी। यह सच है कि कांग्रेस में विदेशी अथवा मिलके कपड़े पहननेवालोंके लिए कोई स्थान नहीं होगा। जो इस कपड़ेका व्यापार करता है अथवा किसी मिलका मालिक है, वह भी कांग्रेस में आ सकता है, लेकिन उसे स्वयं खादी पहनकर खादीकी महिमा स्वीकार करनी होगी, गरीबों के साथ सहयोग करना होगा और चरखेके प्रचारमें मदद देनी होगी। विदेशी कपड़ेका बहिष्कार जनतन्त्रका शाश्वत अंग होगा; इसलिए यदि उसपर जोर न दिया जायेगा तो स्वराज्य मिलना असम्भव हो जायेगा। हमारी अपनी मिलोंके कपड़ेका बहिष्कार सदा के लिए नहीं है; लेकिन हमारे मनसे इस कपड़ेका मोह जाना चाहिए और खादीको प्रधान पद मिलना चाहिए। इसलिए जबतक खादी और चरखेका व्यापक प्रचार नहीं होता तबतक कांग्रेसके लिए मिलका कपड़ा भी त्याज्य होना चाहिए, इस बारेमें मुझे तनिक भी सन्देह नहीं है।

लेकिन अगर मेरे इन विचारोंको भी स्वराज्यवादी स्वीकार न करें तो मेरा उत्तर सीधा-सादा है। तब भी मुझे लड़कर कांग्रेसपर अधिकार प्राप्त नहीं करना है।

यदि मैं उन्हें इतनी-सी बात भी नहीं समझा सकता तो स्वराज्यवादी कांग्रेसपर भले अधिकार कर लें। मैं उन्हें इस कार्यमें मदद दूँगा और अन्य लोगोंको भी मदद देनेके लिए प्रेरित करूँगा। मैं खादी-प्रचारके बिना हिन्दुस्तान के दारिद्र्यका कोई उपचार नहीं देखता। इससे इस वस्तुका त्याग मेरे और सब भारतीयोंके लिए दुःखद होना चाहिए। यदि स्वराज्यवादियोंको यह कार्य भी पसन्द न आये तो मैं