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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

झुककर उन्हें मार्ग दूँगा और खादीके प्रचारके लिए ऐसे साधनोंकी खोज करूँगा जो कांग्रेसके मार्गमें बाधक नहीं होंगे। इस घरसे वैमनस्यको मिटानेमें अपनी समस्त शक्तिका उपयोग करनेकी मेरी प्रतिज्ञा अडिग है, क्योंकि इससे हिन्दू-मुस्लिम वैमनस्य भी दूर होगा। लेकिन क्या गुजरात ऐसा कुछ नहीं कर सकता कि मैंने खादीके प्रचार और उपयोगके बारेमें जो बातें कही हैं, कोई भी मनुष्यका उनका विरोध न करे। यदि गुजरातको खादी में श्रद्धा हो तो वह इसे व्यापक करे। प्रभु उसे इस कार्य में सहायता दे।

[गुजराती से]br>नवजीवन, १४-९-१९२४

९९. टिप्पणियाँ

कातनेवालोंको निर्देश

अखिल भारतीय खादी बोर्ड द्वारा नियुक्त सूत-परीक्षककी ओरसे निम्न निर्देश मिले हैं। ये निर्देश प्रत्येक कातनेवालेको ध्यानमें रखने चाहिए:[१]

इसका तात्पर्य यह है कि महीन सूत कातनेवालोंको सूतकी परीक्षा किये बिना महीन सूत कातनेका प्रयास नहीं करना चाहिए। यदि महीन सूत कच्चा रह जाये तो बिलकुल व्यर्थ हो जाता है। इसके सिवा यदि रुई लम्बे रेशेकी न हो अथवा उसकी पूनियाँ बनाने में खास होशियारी न बरती गई हो तो महीन सूत कातनेका लोभ छोड़ देना चाहिए। ३० अंकतक का सूत महीन सूत नहीं गिना जाता। यदि सूत २० से ३० अंकतक का हो तो हम बहुत-सी रुई बचा सकते हैं और साड़ियाँ और धोतियाँ आदि, जो बहुत वजनदार होती हैं, हल्की और सस्ती बना सकते हैं।

काठियावाड़ियों से क्षमा-याचना

मेरे पास जब कातनेवालोंकी सूची आई तब मुझे काठियावाड़ियोंका नाम कहीं भी दिखाई नहीं दिया। इससे मुझे दुःख हुआ और मैंने टीका की कि काठियावाड़से सूत बिलकुल नहीं आया है। दूसरे हफ्ते मेरे पास भूल-सुधारकी सूचना आई, जिसमें बताया गया था कि काठियावाड़के १३ नाम तो अवश्य थे; लेकिन वे प्रान्तीय कमेटीकी सूची में जुड़ गये थे। मुझे यह भूल सुधार प्रकाशित करनी थी, लेकिन मेरी यात्राके कारण यह नहीं हो पाया। सौभाग्यसे अब मेरे पास नये आँकड़े आये हैं। उनके अनुसार काठियावाड़के ६३ नाम हैं और कच्छके तीन नाम। इतने आँकड़े प्राप्त हुए हैं इसलिए मैं और अधिककी आशा करता हूँ और काठियावाड़ और कच्छसे क्षमा माँगता हूँ। काठियावाड़की आबादी २.६ लाख कही जाती है और महागुजरातकी ९.२ लाख है, अतः काठियावाड़का हिस्सा कमसे कम एक चौथाई होना चाहिए। इसके बजाय काठियावाड़से ६३ लोगोंने और कच्छसे केवल तीन लोगोंने सूत भेजा है। यह

  1. ये यहाँ नहीं दिये गये हैं