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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

भाव होते हुए भी मेरे हृदयपर उनका उतना असर नहीं होता जितना कि श्रीकृष्ण की 'गीता' और तुलसीदासकी 'रामायण' का होता है। "तब वे मुझसे ना उम्मीद हो गये और उन्होंने बेहिचक मुझसे कहा कि आपके दिमागमें जरूर कुछ गड़बड़ है। यह एक उनकी ही मिसाल नहीं। उसके बाद ऐसे कितने ही मुसलमान मित्रोंसे मेरी मुलाकात हुई, जो ऐसे ही विचार रखते हैं। फिर भी मैं मानता हूँ कि यह मनः स्थिति चन्दरोजा है। मैं जस्टिस अमीरअली के इस विचारसे सहमत हूँ कि हारूँ-अल- रशीद और मामूँ के जमानेमें इस्लाम दुनिया के तमाम मजहबोंमें सबसे ज्यादा सहिष्णु था। पर आगे चलकर उनके जमानेके धर्म-गुरुओं की उदार-वृत्ति के खिलाफ प्रतिक्रिया शुरू हुई। प्रतिक्रियावादियोंमें भी बड़े विद्वान् और प्रभावशाली लोग थे और उनके प्रभावने इस्लामके उदार और सहिष्णु धर्मगुरुओं और तत्त्ववेत्ताओंकी शिक्षाको प्रायः दबा दिया। भारत में उस प्रतिक्रिया के दुष्परिणाम हम आज भी भुगत रहे हैं। लेकिन इस बातमें तिल- मात्र भी सन्देह नहीं है कि इस्लामके अन्दर इस अनुदारता और असहिष्णुताको निकाल डालने की पूरी-पूरी क्षमता है। हम बड़ी तेजीसे उस दिनके नजदीक पहुँच रहे हैं जबकि इन मित्रोंका सुझाया सूत्र सारी मनुष्य जातिको मान्य हो जायेगा। इस समय आवश्यकता इस बातकी नहीं कि सबका धर्म एक बना दिया जाये, बल्कि इस बातकी है कि भिन्न-भिन्न धर्मोके अनुयायी और प्रेमी परस्पर आदर-भाव और सहिष्णुता रखें। हम निष्प्राण एकरूपता नहीं चाहते, बल्कि हम चाहते हैं, विविधतामें एकता। पूर्व परम्पराओं तथा आनुवंशिक संस्कार, जलवायु और दूसरी आसपासकी बातोंके प्रभावको उन्मूलित करनेका प्रयत्न निश्चय ही विफल होगा और ऐसा प्रयत्न करना अधर्म होगा। सब धर्मोकी आत्मा एक है; हाँ, वह भिन्न-भिन्न रूपों में मूर्तिमान होती है। रूपोंकी यह विविधता कालके अन्ततक कायम रहेगी। इसलिए जो बुद्धिमान हैं, समझदार हैं, वे तो ऊपरी कलेवरपर ध्यान न देकर भिन्न-भिन्न रूपोंमें उसी एक आत्माका दर्शन करेंगे। हिन्दुओंके लिए यह आशा करना कि इस्लाम, ईसाई धर्म और पारसी धर्म हिन्दुस्तानसे निकाल दिया जा सकेगा, एक निरर्थक स्वप्न है और इसी तरह मुसलमानोंका भी यह उम्मीद करना कि किसी दिन अकेले उनके काल्पनिक इस्लामका राज्य सारी दुनियामें हो जायेगा, कोरा ख्वाब है। पर अगर इस्लामके लिए एक ही खुदाको तथा उनके पैगम्बरोंकी अनन्त परम्पराको मानना काफी होता हो तो हम सब मुसलमान हैं, इसी तरह हम सब हिन्दू और ईसाई भी हैं। सत्य किसी एक ही धर्म-ग्रन्थकी ऐसी सम्पत्ति नहीं है जो अन्यत्र हो ही नहीं।

[ अंग्रेजीसे ]
यंग इंडिया, २५-९-१९२४