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१३६. पत्र: वी० एस० श्रीनिवास शास्त्रीको

मार्फत 'कॉमरेड'
दिल्ली
२० सितम्बर, १९२४

परमप्रिय मित्र,

आपके स्वास्थ्यका समाचार जाननेके लिए आपको पहले ही पत्र लिखना चाहता था। हकीमजीको[१] भेजे आपके तारसे मुझे अपना वह इरादा याद आ गया। कृपया पूर्ण रूपसे विश्राम करें।

दुःखी न हों। मेरे लिए तो उपवास धार्मिक कर्त्तव्य था। मैं चाहता हूँ, मित्रगण इस बात से प्रसन्न हों कि ईश्वरने मुझे इस अग्नि-परीक्षामें प्रवेश करनेकी शक्ति दी है।

सस्नेह,

आपका,
मो० क० गांधी

[ अंग्रेजीसे ]
लेटस ऑफ श्रीनिवास शास्त्री

१३७. पत्र: वसुमती पण्डितको

भाद्रपद बदी ७ [२० सितम्बर, १९२४][२]

चि० वसुमती,

मेरा उपवास २१ दिनका है। वह बुधवारको प्रारम्भ हुआ था; इसलिए आज उसका तीसरा दिन है। अक्तूबरकी ८वीं तारीखको, बुधवारके दिन समाप्त होगा। मुझे उपवास इस कारण करना पड़ा है कि इसके बिना मेरे लिए धर्मका पालन करना असम्भव हो गया था; इसलिए तुम निश्चिन्त रहना। मुझे परम शान्तिका अनुभव हो रहा है। भागकर मेरे पास आनेकी इच्छा न करना। तीसरे हफ्ते में आ सकती हो; उस समय तो मैं भी तुम्हें देखना चाहूँगा। 'श्रीमती' तो पतेमें दिया हुआ है। पतेमें ऐसा ही लिखा जाता है। मेरे लिए तो तुम सदा सभी बेटी रहोगी। जब तुम देवलाली में थी, तब मैं तुम्हें पत्रमें क्या लिखा करता था, यह तो मैं भूल

  1. हकीम अजमलखाँ।
  2. डाककी मुहरसे।