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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

उनकी पत्नीने भी उनका अनुसरण किया। वे सभी कार्य करनेके लिए तैयार रहते थे। वे सूचना मिलनेके बाद एक घंटे के भीतर ही उन निर्वासित भारतीयोंके एक दलकी जिम्मेदारी सँभालनेके लिए तैयार हो गये थे, जिन्हें जनरल स्मट्सने भारत वापस जानेका आदेश दे दिया था। देशकी आजादीके लिए किसी भी त्यागको वे बहुत बड़ा नहीं समझते थे। ऐसे समयमें उनकी मृत्यु दक्षिण आफ्रिकामें रहनेवाले हमारे देशवासियोंके लिए एक बहुत बड़ी क्षति है। वे अकेले ही शक्तिशाली दक्षिण आफ्रिकी सरकारको चुनौती देनेमें समर्थ थे। वास्तवमें कुछ ही दिन पूर्व मुझे उनका एक पत्र मिला था, जिसमें उन्होंने अपने आन्दोलनकी योजना बताई थी। किन्तु अफसोस! निष्ठुर नियतिकी योजना कुछ और ही थी। नायडू अब संसारमें नहीं रहे; किन्तु उनका कार्य सदा जीवित रहेगा। श्री पी० के० नायडू अंग्रेजीके अच्छे पण्डित थे। वे हिन्दी, तेलुगू, फ्रांसीसी तथा जुलू भाषाएँ भी जानते थे। उन्होंने सब-कुछ अपने प्रयत्नसे ही सीखा था। शरीरसे वे बड़े हट्टे-कट्टे थे। वे एक अच्छे मुक्के-बाज भी थे। किन्तु उन्होंने अहिंसाका रहस्य समझ लिया था; इसलिए वे गम्भीरतम उत्तेजना के क्षणोंमें भी अपने ऊपर नियन्त्रण रख सकते थे। वे जन्मजात श्रमिक थे। वे कभी किसी कामको करनेसे इनकार नहीं करते थे। वे एक कुशल नाई थे और चूँकि वे क्लर्क नहीं बनना चाहते थे, इसलिए बाल काटनेकी एक दुकान चलाते थे। जब टॉल्स्टॉय फार्ममें हमने चप्पल बनानेका काम शुरू किया तो उसमें भी उन्होंने बड़ी कुशलता हासिल कर ली। वे एक सच्चे सिपाही थे। वे आज्ञा-पालन करना जानते थे। मैं उनकी मृत्युपर श्रीमती नायडू और दक्षिण आफ्रिका के अपने देशभाइयों के प्रति अपनी विनम्र समवेदना प्रकट करता हूँ।

अमानुषिक व्यवहार

श्रीमती गंगाबाई गिडवानी[१]और डा० चौइथरामके[२]आचार्य गिडवानीसे मिलकर लौटनेपर इन दोनोंसे मेरी मुलाकात हुई। उन्होंने मुझे बताया कि आचार्य गिडवानी दिन-भर कोठरीमें बन्द रखे जाते हैं। उन्हें तीन महीनेमें केवल एक बार मुलाकातियोंसे मिलने की अनुमति है। उनका वजन ३० पौंडसे भी अधिक घट गया होगा। उन्होंने यह भी कहा कि अधिकारियोंने बहुत दिनोंसे आचार्यका वजन भी नहीं लिया है। जब उन्होंने सुपरिटेंडेंट से पूछा कि वजन क्यों नहीं लिया गया तो उसने अपने कन्धे हिलाकर कहा, "यहाँ ऐसा नियम नहीं है।" मैं जानता हूँ कि जेल कोई महल नहीं होता। जेलमें कैदीको घरकी तमाम सुविधाओंकी उम्मीद नहीं करनी चाहिए। पर मैं ऐसी बहुत-सी जेलोंको भी जानता हूँ, जहाँ ऐसा व्यवहार असम्भव है जैसा आचार्य गिडवानीके साथ किया जा रहा है। हाँ, अधिकारियोंके साथ इन्साफ करनेके लिए मुझे यह भी बता देना चाहिए कि उन्होंने आचार्यको हर रोज सुबह-शाम आधे घंटेतक खुली हवामें घूमनेकी इजाजत दे रखी है; किन्तु उन्होंने इस

  1. ए० टी० गिडवानीकी पत्नी।
  2. डा० चोइथराम गिडवानी; सिन्धके कांग्रेसी नेता।