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सुविधाको तिरस्कारके साथ अस्वीकार कर दिया है। इसपर मुझे ताज्जुब नहीं होता। वे स्वाभिमानी और आत्मसम्मानी व्यक्ति हैं। वे जानते हैं कि उन्होंने कोई गुनाह नहीं किया है। उन्होंने नाभाकी सीमा भी किसी दुराग्रहके कारण पार नहीं की। उनकी मनुष्यता उन्हें वहाँ खींचकर ले गई थी। उन्होंने कभी भी ऐसा कोई काम नहीं किया, जिसे हम अभद्रतापूर्ण कह सकें। उन्होंने नाभा राज्यके खिलाफ कोई साजिश नहीं की। उनपर कोई हिंसात्मक इरादा रखनेका शकतक नहीं किया गया है। तब फिर उनके साथ एक सामान्य कैदीकी तरहका व्यवहार क्यों नहीं किया जाता, जिसे दिन-भर खुली हवामें रखा जाता है? खूनी कैदियोंतक को खूब खुली हवाकी और घूमने-फिरने की काफी सुविधा दी जाती है। इसलिए आचार्य गिडवानीको जो निर्दयतापूर्वक कोठरी में तनहा बन्द रखा जाता है, उसका मेरे जानते तो कोई कारण नहीं है। ऐसी तनहाईकी सजा तो जेलके नियमोंका कोई गम्भीर उल्लंघन करनेपर ही दी जाती है। यदि आचार्य गिडवानीने ऐसा कोई कसूर किया हो तो वह सर्व-साधारणको बताया जाना चाहिए। हो सकता है कि नाभा राज्यमें ऐसी सुविधा न हो जिससे वह आचार्य गिडवानीको दिन-भर बाहर रख सके। यदि यह बात है तो मेरा सुझाव है कि उन्हें दूसरी जेलमें बदल दिया जाये। मैं जानता हूँ कि कैदियोंको एक जेलसे हटाकर दूसरीमें रखने की प्रथा सारे भारतकी जेलों में प्रचलित है। उदाहरणार्थ, मैंने यरवदा सेन्ट्रल जेलमें पंजाब, जूनागढ़ राज्य और मद्रास अहातेसे लाये हुए कैदी भी देखे थे। जब मैंने श्रीमती गिडवानी और डा० चोइथरामका यह कथन सुना तो मुझमें सविनय अवज्ञाकी भावना पूरी तरहसे जाग उठी और मेरा मन हुआ कि मुझे इसके खिलाफ संघर्ष करना चाहिए। परन्तु जब मेरे मनमें यह खयाल आया कि इसके लिए मुझमें शक्ति ही कहाँ है तो मेरी गर्दन मारे शर्मके नीचे झुक गई। एक-दूसरेके खिलाफ खम ठोककर लड़ते हुए दलोंमें विभक्त और हिन्दुओं और मुसलमानोंके झगड़ोंसे जर्जर भारतमें सविनय अवज्ञा असम्भव ही दिखाई देती है। पण्डित जवाहरलाल मुझसे पूछते हैं कि क्या उन्हें नाभाके प्रशासकसे प्राप्त पत्रकी ललकारपर नाभाकी हदमें प्रवेश करके अपने साथीसे मिलने नहीं जाना चाहिए। काश, मैं उनसे 'हाँ' कह पाता। इस अवस्थामें तसल्ली की बात सिर्फ इतनी ही है कि आचार्य गिडवानी वीर पुरुष हैं और उन्हें जेलमें जो भी कष्ट दिये जायें, उन्हें सहनेमें वे समर्थ हैं। ईश्वर उन्हें यह अग्नि परीक्षा झेलनेका बल दे। स्वाधीनताकी यह कीमत हमें चुकानी ही पड़ेगी। स्वाधीनता बड़ी महँगी वस्तु है और जेल उसे तैयार करने के कारखाने हैं।

[ अंग्रेजीसे ]
यंग इंडिया, २५-९-१९२४