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१६३. हिन्दू-मुस्लिम एकता सम्बन्धी प्रस्तावका मसविदा[१]

[ २७ सितम्बर, १९२४ से पूर्व ]

यह सम्मेलन भारतमें हिन्दुओं और मुसलमानोंके बीच बहुत-से स्थानोंपर चल रहे उस विरोध-वैमनस्य और उन झगड़े-फसादोंकी निन्दा करता है, जिनके परिणाम-स्वरूप लोगोंकी जानें गई हैं, सम्पत्ति जलाई[२] गई है और पूजा-स्थानोंकी पवित्रता भंग की गई है। सम्मेलन इस प्रकारके कार्योंको बर्बरतापूर्ण और धर्म-विरुद्ध[३] मानता है तथा इन उपद्रवोंमें नुकसान उठानेवाले लोगोंके प्रति हार्दिक सहानुभूति प्रकट करता है। इस सम्मेलनका विचार है कि किसी भी मनुष्यके लिए[४] कानूनको अपने हाथमें लेना अवैध और धर्म-विरुद्ध है। सम्मेलनका मत है कि सभी मतभेदोंको, चाहे वे किसी प्रकारके हों, पंच-फैसलेके लिए सौंप देने चाहिए या[५] न्यायालयमें पेश करना चाहिए। यह सम्मेलन पंचोंके रूपमें...को (ये व्यक्ति ऐसे होने चाहिए जो इस कार्यमें अपना सारा समय लगायें) नियुक्त करता है और उन्हें यह अधिकार देता है कि वे ऐसे अभिकर्त्ता (एजेंट) नियुक्त कर सकते हैं जो दोनों सम्प्रदायोंके सभी झगड़ोंका निपटारा करें, पिछली ज्यादतियोंकी जाँच-पड़ताल करें तथा अपनी जाँचके निष्कर्षोको प्रकाशित करें।

इस सम्मेलनका विचार है कि हिन्दुओंको गो-हत्या बलपूर्वक बन्द करानेकी आशा नहीं करनी चाहिए, बल्कि इसके लिए उन्हें मुसलमानोंकी सद्भावनापर विश्वास करना चाहिए और भरोसा रखना चाहिए कि दोनों सम्प्रदायोंके सम्बन्ध अच्छे हो जानेपर इस सम्बन्धमें सहज ही उनकी भावनाका खयाल रखा जाने लगेगा और इसी प्रकार मुसलमानोंको भी मसजिदोंके पास हिन्दुओंका गाना-बजाना जबरदस्ती बन्द करानेकी आशा नहीं करनी चाहिए, बल्कि हिन्दुओंकी सद्भावनापर विश्वास करते हुए मानना चाहिए कि जहाँ उनकी भावनाएँ प्रामाणिक होंगी, वहाँ हिन्दू लोग यथा-सम्भव उनका पूरा खयाल रखेंगे।

इस सम्मेलनका विचार है कि कुछ अखबारोंने, विशेषकर उत्तर भारत के कुछ अखबारोंने, घोर अतिशयोक्तिपूर्ण बातें लिखकर एक-दूसरेके धर्मकी निन्दा करके और

  1. अनुमानतः यह मसविदा गांधीजीने तैयार किया था। इसका पहला अनुच्छेद कुछ परिवर्तनों के साथ, जिनका उल्लेख नीचे पाद-टिप्पणियोंमें किया गया है, २९-९-१९२४ के बॉम्बे क्रॉनिकलमें शौकत अली द्वारा प्रस्तुत और एकता सम्मेलनकी विषय समिति द्वारा २७ सितम्बर, १९२४ को स्वीकृत प्रस्तावके रूपमें छपा था।
  2. स्वीकृत प्रस्तावमें यहाँ "और लूटी" शब्द जोड़ा गया है।
  3. स्वीकृत प्रस्तावमें "धर्म-विरुद्ध" शब्द नहीं है।
  4. यहाँ "बदला लेने या दण्ड देनेके तौरपर" ये शब्द जोड़े गये हैं।
  5. यहाँ "अगर यह असम्भव हो तो" शब्द जोड़े गये हैं।