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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

हर तरहसे पूर्वग्रहों और आवेशको उत्तेजन देकर इस तनावको बढ़ाया है। यह सम्मेलन जनता से अनुरोध करता है कि वह इस प्रकारके अखबारों तथा पुस्तिकाओंको खरीदना और पढ़ना बन्द कर दे और प्रस्तावमें उल्लिखित बोर्डको सलाह देता है कि वह इस प्रकारके लेखोंकी जाँच-पड़ताल[१] करे और समय-समयपर गलत -बयानियों को सुधारकर प्रकाशित करे।

यह सम्मेलन प्रस्तावके अनुसार नियुक्त किये जानेवाले बोर्डको अधिकार देता है कि वह अल्पसंख्यकोंके अधिकारोंकी रक्षाकी एक योजना बनाये और इस उद्देश्यकी पूर्ति के लिए सभी दलों और वर्गोंसे आवेदन माँगे और अपने निष्कर्षोंको प्रकाशित करे। ये निष्कर्ष १९२९ के अन्ततक पाँच वर्षोंके लिए सभी दलों और वर्गोपर लागू रहेंगे और उसके बाद भी जबतक सभी पक्षोंके प्रतिनिधियोंका एक संयुक्त सम्मेलन उसपर पुनर्विचार न करे तबतक लागू रहेंगे।

इस सम्मेलनका विचार है कि अवयस्कों और नासमझ तथा अशिक्षित वयस्कों की शुद्धि या तबलीग नैतिक भावनाके विपरीत है और इसे बन्द कर देना चाहिए। इस सम्मेलनका यह भी विचार है कि धनका प्रलोभन देकर तबलीग या शुद्धि करना गर्हित है; इसलिए जहाँ भी ऐसा किया जाता हो, उसे बन्द कर देना चाहिए। इसके अतिरिक्त सम्मेलनका विचार यह भी है कि तबलीग या शुद्धि कभी लुक-छिप कर नहीं करनी चाहिए और जिसका भी धर्म-परिवर्तन किया जाये, खुले तौरपर तथा उसके सम्बन्धियोंको सूचना देकर किया जाये।

अंग्रेजी प्रति (एस० एन० १५८७०) की फोटो- नकलसे।

१६४. पत्र: मोतीलाल नेहरूको

२७ सितम्बर, १९२४

प्रिय मोतीलालजी,

आपने कल रात जो प्रस्ताव[२] मुझे पढ़कर सुनाया, उसे आपके निर्देशनमें सम्मेलनने स्नेह और करुणाकी भावनावश पास कर दिया है। मैं आपसे कहूँगा कि आप सम्मेलनको यह विश्वास दिलायें कि यदि मेरे लिए उसकी इच्छाओंका पालन कर सकना सम्भव होता तो मैं खुशी से करता। मैंने अपने मनको बार-बार टटोला है और मैं देखता हूँ कि मेरे लिए उपवास समाप्त करना सम्भव नहीं है। मेरा धर्म

  1. साधन-सूत्रमें "निरीक्षण करें" है।
  2. सम्मेलनने गांधीजीके उपवासपर चिन्ता और दुःख प्रकट करते हुए अपने प्रस्तावमें धार्मिक स्थानोंके अपवित्र किये जानेकी निंदा की थी और गांधीजीको विश्वास दिलाया था कि सम्मेलनके सदस्य धार्मिक सद्भाव के लिए प्रयत्न करेंगे। अन्तमें प्रस्तावमें गांधीजीसे अनुरोध किया गया था कि वे तुरन्त अपना उपवास समाप्त कर दें।